- मां कालरात्रि की पूजा शाम के समय होती है
- सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तांत्रिक करते हैं पूजा
- दुष्टों का नाशकर भक्तों को मां अभय का वरदान देती हैं
माता के नाम के अनुसार ही मां का स्वरूप भी होता है। माता के शरीर का रंग गहरा नीला अथवा ग्रे होता है। यही कारण है कि मां को यह रंग प्रिय भी है। खुले बालों और बड़ी आंखों वाली माता को देख कर भूत-प्रेत भी कांपते हैं। माता गर्दभ पर बैठती हैं और उनकी सांस से भी अग्नि प्रज्जवलित होती है। एक हाथ में कटार होने के बावजूद मां का एक हाथ अभय मुद्रा में होता है। इससे मां के करुण ह्रदय के बारे में भी पता चलता है। माता मधु कैटभ राक्षस का वध करने वाली हैं और मां का रुष्ट रूप केलव दुष्टों के लिए होता है जबकि वह अपने भक्तों की रक्षा करने वाली और उन्हें सभी सिद्धियों का वरदान देने वाली मानी गई हैं। मां का एक नाम शुभकंरी भी है। आइए महासप्तमी पर मां की पूजा की विधि,मंत्र और आरती के साथ माता के प्रिय भोग के बारे में भी जानें।
नवरात्रि में सप्तमी का है बड़ा महत्व
नवरात्रि की सप्तमी को महासप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन दुर्गा पंडालों में विराजी मां की आंख से पट्टी भी खोली जाती है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी नवरात्र में विशेष महत्व रखते हैं। महासप्तमी पर तांत्रिक अपने ध्यान-साधना तेज करते हैं। वैसे तो माता की पूजा सामान्य तरीके से होती है लेकिन तंत्र सिद्ध करने वाले रात्रि में माता की पूजा करते हैं। सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है। देवी कालरात्रि की पूजा के बाद भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा करना जरूरी होता है।
देवी कालरात्रि के महामंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कालरात्रि की पूजा से सभी सिद्धियां जीती जा सकता है
माँ कालरात्रि असुरों और दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं। माता ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं। माता की पूजा करने वाले को अभय वरदना मिलता है। अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय से उनके भक्त मुक्त होते हैं।
मां को प्रिय है गुड़ का भोग
माता कालरात्रि की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने से मां प्रसन्न होती हैं। हालांकि गुड़ के इस प्रसाद को ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य शोकमुक्त होता है।
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र
मां कालरात्रि का मंत्रः ॐ कालरात्रि देव्ये नम।। , इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
सप्तमी पर माता का प्रिय प्रसाद और रंग दिन का रंग :
सातवें दिन का प्रसाद वैसे तो सर्वप्रथम गुड़ ही होना चाहिए लेकिन इसके साथ उड़द दाल का बना वड़ा, दही व शहद से बना मधुपाक भी भोग में लगाया जाता है। सप्तमी पर माता को नीले या ग्रे रंग चढ़ाना चाहिए। खुद भी इस रंग का वस्त्र पहने और माता को हो सके तो नीले फूल चढ़ाएं अन्यथा लाल रंग का फूल अर्पित करें।
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥