- सकट चौथ, संतान की लंबी उम्र के लिए होता है
- शिवजी ने काट दी इस दिन गणपति की गर्दन
- गणपति जी, पार्वती माता के आदेश का पालन कर रहे थे
अपने बच्चों की लंबी उम्र और बेहतर स्वास्थ्य के लिए माताएं सकट चौथ का व्रत करती हैं। ये व्रत निर्जला होता है। चतुर्थी तिथि महीने में दो बार पड़ती है। पहली शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायकी चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी यानी सकट चौथ के नामसे जानी जाती है।
संतान की सलामती और सुख समृद्धि के लिए रखने जाने वाले इस व्रत में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। कई जगह सकट चौथ को तिलकुट चौथ या तिलकुट चतुर्थी जैसे नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शाम को पूजा कर चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है। इसके बाद तिलकुट का प्रसाद बांटा जाता है।
सकट चौथ की पूजा विधि (Sakat 2020 Puja Vidhi)
सकट चौथ के दिन सुबह स्नान कर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। एक चौकी पर लाल या पीले रंग के कपड़े का आसन बिछाएं और उस पर गणपति जी को विराजें। इसके बाद गणपति जी को दूब, लड्डू और तिलकुट का भोग लगा कर विधिवत पूजा करें। आरती और चालिसा पढ़ने के बाद वहीं बैठकर सकट चौथ की कथा सुनें। शाम को भी गणपति जी की पूजा करें और तिल और गुड के बने लड्डू, ईख शकरकंद, अमरूद और घी उन्हें चढ़ाएं। इसके बाद पूजा में तिलकुट का बकरा बनाए और किसी बच्चे से इस तिलकुट के बकरे की गर्दन को कटवा दें।
सकट चौथ व्रत कथा ( Sakat 2020 Vrat Katha)
मां पार्वती एक बार स्नान करने गईं तो दरवाजे पर भगवान गणपति को पहरा देने के लिए खड़ा रहने का निर्देश दिया। मां पार्वती ने गणपति जी से कहा कि जब तक वह खुद स्नान कर बाहर नहीं आतीं किसी को भी अंदर नहीं आने देना। यह सुनकर गणपति जी दरवाजे पर पहरा देने लगे। तभी शिव जी वहां पहुंचे और माता पार्वती से मिलने जाने लगे,तभी गणपति जी ने शिवजी को अंदर जाने से रोक दिया। शिव जी इससे काफी नाराज हुए और अपमानित भी। गुस्से में आ कर उन्होंने अपने त्रिशूल से गणपति जी का सिर काट दिया। इधर, शोर सुन कर जब मां पार्वती बाहर आईं तो गणपति जी का सिर धड़ से अलग पाया। ये देखते ही वह रोने लगीं और शिवजी को वापस गणपति को जीवित करने का आदेश दिया।
भागवान शिव ने आनन-फानन में एक हाथी का सिर काट कर गणपति जी के धड़ पर लगा कर उन्हें जीवित कर दिया। गणपति जी को दूसरा जीवन मिल गया और तभी से इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।