- वट वृक्ष की पूजा कर अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करें
- संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत और पूजा की जाती है
- वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास होता है
22 मई को वट सावित्रि व्रत रखा जाना है। यह व्रत अखंड सौभाग्य के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए विशेष रूप से रखा जाता है। ज्येष्ठ महीने के अमावस्या के दिन इस व्रत को किया जाता है। यह व्रत सुहाग के लिए विशेष कर रखा जाता है क्योंकि इसी दिन माता सावित्रि अपने पति को यमराज से छीन कर जीवित लाईं थीं। इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करने के साथ माता सावित्रि और सत्यवान की भी पूजा करती हैं। साथ ही निसंतान सुहागिनें संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत करती हैं। वट वृक्ष की पूजा के साथ ही गणेश भगवान और गौरा मां के साथ साथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा का भी विधान है, क्योंकि माना जाता है कि वट (बरगद) वृक्ष में इन तीनों देवताओ का वास होता है। वट वृक्ष की पूजा करने से तीनों देवता प्रसन्न होते है और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
वट सावित्री व्रत पूजा की सामग्री/ Vat Savitri Vrat Puja Samagri List
वट सावित्री व्रत पूजा के लिए पवित्र और साफ कपड़े से बनी माता सावित्री की मूर्ति लें। इसके साथ बांस का पंखा, वटवृक्ष की परिक्रमा के लिए लाल धागा, मिट्टी से बना कलश और दीपक, मौसमी फल, सिंदूर, कुमकुम और रोली और पूजा के लिए लाल वस्त्र। साथ ही सात तरह के अनाज, अक्षत और चना व गुड़ रखें। पूजा के बाद चने व गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है।
जानें, वट सावित्री व्रत पूजा की पूरी विधि
सुबह स्नान आदि से निवृत हो कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद सुहागिने अपना सोलह श्रृंगार कर लें।
इसके बाद सर्वप्रथम पूजा वट वक्ष की करनी चाहिए। साथ ही सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा भी वहीं करें।
इसके लिए पूजा की थाली में सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल, मिठाई, सुहाग की सामग्री और चुनरी रख लें।
विधिवत सब कुछ वट वृक्ष पर चढ़ाते हुए अपने सुहाग और संतान की लंबी उम्र की कामना करते रहें।
पूजा करने के बाद वृक्ष में जल चढ़ाएं और आचमन लेकर सभी से प्रार्थना करें कि उन्हें भी अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो।
वट के मूल में ब्रह्म, मध्य में जर्नादन, अग्रभाग में शिव और समग्र में सावित्री है, इसलिए सारी पूजा वहीं करनी चाहिए।
पूजा के बाद एक सूत के डोर से वट को बांधे और गंध, पुष्प तथा अक्षत से पूजन करके वट एवं सावित्री को नमस्कार कर प्रदक्षिणा करें। 11, 21, 51 बार वट वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए।
अंत में वहीं बैठ कर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें। प्रसाद में चढ़े फल को ग्रहण कर शाम के समय मीठा भोजन ग्रहण करें।
वट सावित्रि पूजा करने के बाद पति का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए।