- मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने से पूरी होती है कामना
- संक्रांति पर भगवान श्रीराम ने पहली बार उड़ाई थी पतंग
- पतंग उड़ाना सेहत के लिए भी होता है बेहद अच्छा
मकर संक्रांति यानी खिचड़ी पर पतंग उड़ाने का एक अलग ही जोश सबमें नजर आता है। गली-मोहल्लों में छतों पर स्पीकर पर गाने बजाकर पतंग उड़ाई जाती है। सुबह स्नान और पूजा के बाद से ही पंतग उड़ाना शुरू होता है और अंधेरा होने तक ये सिलसिला जारी रहता है।
पतंगों की पेंच लगाने की प्रतियोगिता भी खूब होती है, लेकिन आपको पता है कि पंतग उड़ाने की परंपरा आखिर मकर संक्रांति पर शुरू क्यों हुई और इसे उड़ाने का क्या महत्व है। पतंग उड़ाने के साथ गजक, तिल के लड्डू खाने की परंपरा क्यों है, आइए जानें।
पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान श्रीराम ने की थी। पुराणों में उल्लेख है कि मकर संक्रांति पर पहली बार भगवान श्रीराम ने पतंग उड़ाई थी और ये पतंग उड़ते हुए स्वर्गलोक में इंद्र के पास जा पहुंची। इस बात का उल्लेख तमिल की तन्दनानरामायण में भी मिलता है। भगवान ने इस पतंग पर संदेश लिख कर इंद्रदेव को दिया था। मान्यता है कि संक्रांति पर अपनी मनोकामना यदि पतंग पर लिख कर उड़ाया जाए तो वह ईश्वर तक पहुंचती है और आस पूरी होती है।
पतंग उड़ाना सेहत के लिए भी अच्छा होता है
पतंग उड़ाना धार्मिक लिहाज से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टीकोण से भी अच्छा माना गया है। पतंग उड़ाना दिमाग को हमेशा सक्रिय बनाए रखता है। इससे हाथ और गर्दन की मांसपेशियों में लचीलापन आता है। इतना ही नहीं पतंग उड़ाने से मन-मस्तिष्क प्रसन्न रहता है क्योंकि इससे गुड हार्मोंस का बहाव बढ़ता है। धूप में पतंग उड़ाना शरीर के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि विटामिन डी शरीर को मिलता है। पतंग उड़ाते समय आंखों की भी एक्सरसाइज होती है।
तो संक्रांति पर अब पतंग उड़ा कर आप अपनी मनोकमनाओं को भूरा करें और सेहत को भी चंगा रखें।