- मोरपंख से श्रीकृष्ण के कई भाव जुड़े हैं
- मोरपंख के सुख और दुख को प्रदर्शित करता है
- राधा के प्रेम और कालसर्प से भी संबंध जुड़ा है
प्रेम और दया के प्रतीक श्रीकृष्ण सारे देवताओं में सबसे ज्यादा श्रृंगार प्रिय भगवान हैं। कृष्ण को हमेशा उनके भक्त नए कपड़ों और आभूषणों से लादे रखते हैं। कृष्ण का नाम जुंबा पर आते ही हमारे मन में सबसे पहले जो छवि उभर कर सामने आती है वो आभूषण पहन रखे और मस्तक पर मोर पंख धारण किए हुए युवा कृष्ण की आती है। भगवान श्रीकृष्ण एक ओर जहां प्रेम और दया के प्रतीक हैं वहीं दूसरी ओर वह अपने रौद्र रूप में शत्रुओं का नाश करने वाले भी हैं। इन सब से इतर वो कई बार मित्र और शत्रु के लिए समभाव भी रखते हैं। यानी उनके रूप में विविधता है जैसे की मोरपंख में होती है। कान्हा का मोरपंख पहनना केवल प्रेम या उसके प्रति लगाव को ही नहीं दर्शाता बल्कि इसके जरिये भगवान ने कई संदेश भी दिए हैं।
इन दो चीजों से है अटूट संबंध-
बांसुरी और मोरपंख के बिना कान्हा का स्वरूप अधूरा है। इसके पीछे कारण भी यही है कि उनके रूप को पूरा करने में बांसुरी और मोरपंख का बहुत बड़ा योगदान है। बांसुरी उनका प्रेम है तो मोरपंख उनके संदेश का प्रचारक। इन दोनों के बिना श्रीकृष्ण अधूरे हैं। मोरपंख उनके सिर पर क्यों सजा है इसके पीछे एक नहीं कई कारण हैं। आइए आज इन कारणों को जानें।
शत्रुओं का समूल नाश करने वाले-
ऐसी मान्यता है कि मोर ही एक ऐसा प्राणी है जो पूरे जीवन काल ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है। यही नहीं मोर वैसे तो अपने आप में मस्त और आनंदित रहता है लेकिन यदि कोई उसे छेड़े या दुश्मनी करे तो वह उसका नाश कर देता है। ठीक इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण खुद में मस्त रहने वाले हैं लेकिन यदि कोई उनसे शत्रुता ठानता है तो वह उसे किसी भी हाल में नहीं छोड़ते। वह उसका समूल नाश कर देते हैं।
राधा से प्रेम का प्रतीक भी है-
मोरपंख कान्हा के साथ रहने की एक बड़ी वजह उनका राधा से उनका अटूट प्रेम है। राधा के महल में ढेर सारे मोर थे और जब एक बार क़ृष्ण की बांसुरी पर राधा नाचने लगी तो मोर भी मद मस्त हो कर नाचने लगे और एक मोर का पंख नाचते हुए नीचे गिर गया। तब श्री कृष्ण भगवान ने इसे पंख को उठा कर अपने माथे पर सजा लिया। मोरपंख को उन्होंने राधा के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना।
शत्रु को भी दिया विशेष स्थान-
कान्हां के भाई थे बलराम जोकि शेषनाग के अवतार थे। मोर और नाग एक दूसरे के दुश्मन होते हैं लेकिन कृष्ण जी के माथे पर लगा मोरपंख यह संदेश देता है कि वह शत्रु को भी विशेष स्थान देते हें। मोरपंख को माथे पर लगा कर उन्होंने यह बताया है कि मित्र और शत्रु के लिए उनके मन में समभाव है।
सुख और दुख का प्रतीक-
जिस तरह से जीवन में सुख और दुख के कई रंग होते हैं वैसे ही मोरपंख भी कई रंगों में होता है। ये मोरपंख बताता है कि जीवन के रंग को जैसा हम देखते हैं वैसा ही दिखता है। यानी दुखी मन से हर रंग बेरंग लगता है लेकिन मन प्रसन्न हो तो हर रंग चटक नजर आता है। इस लिए अपने नजरिए को बदल कर खुशी पाई जा सकती है।
कालसर्प योग भी था कारण-
क्योंकि मोर और सर्प एक दूसरे के दुश्मन होते हैं इसलिए कालसर्प योग में मोरपंख को साथ रखना चाहिए। श्रीकृष्ण पर भी कालसर्प योग था। इसलिए वह मोरपंख को सदा साथ रखते थे। इसलिए जिस जातक को ऐसा योग हो उसे मोरपंख साथ जरूर रखना चाहिए। मोरपंख के जरिये कान्हा ने कई संदेश दिया और इस संदेश को समझ कर जीवन को आसान बनाया जा सकता है।