- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा गया है योगिनी एकादशी, 5 जुलाई को है तिथि।
- भगवान विष्णु को समर्पित है योगिनी एकादशी, व्रत से मिलता है 88 हजार लोगों के भोज का फल।
- योगिनी एकादशी पर जरूर करें कथा का पाठ, भक्तों को मिलती है सभी पाप और श्राप से मुक्ति।
Yogini Ekadashi 2021 Vrat in Hindi: सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि समस्त व्रतों में एकादशी व्रत सबसे उत्तम है। वर्ष में पड़ने वाली कुल 24 एकादशियां भगवान विष्णु को समर्पित हैं। आषाढ़ कृष्ण की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। कहा जाता है जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं योगिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। भगवान श्री कृष्ण के मुताबिक, जो भक्त योगिनी एकादशी व्रत रखता है उसे 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने जितना पुण्य मिलता है। ऐसा माना गया है कि एकादशी व्रत पर विधान के अनुसार पूजा करना चाहिए तथा कथा का पाठ करना चाहिए।
योगिनी एकादशी तिथि और मुहूर्त (Yogini Ekadashi Tithi Date and Muhurat, Panchang)
योगिनी एकादशी तिथि (Yogini ekadashi 2021 Date): 5 जुलाई 2021
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 04 जुलाई 2021 शाम 07:55
एकादशी तिथि समाप्त: 05 जुलाई 2021 रात 10:30
पारण मुहूर्त: 6 जुलाई 2021 सुबह 05:29 से सुबह 08:16
यहां जानिए, योगिनी एकादशी व्रत की पौराणिक व्रत कथा।
योगिनी एकादशी व्रत कथा / योगिनी एकादशी की कहानी / Yogini ekadashi vrat katha in hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार अलकपुरी नाम के नगर में राजा कुबेर रहा करते थे। राजा कुबेर का एक माली था जिसके ऊपर महादेव की पूजा-आराधना के लिए विशेष रुप से मानसरोवर से फूल लाने की जिम्मेदारी थी। एक दिन किसी काम में व्यस्त हो कर वह फूल समय पर लाने में असमर्थ हो गया।
जब राजा कुबेर को यह बात पता चली तब वह बेहद क्रोधित हुए और माली को कोढ़ी होने का श्राप दे दिए। कोढ़ी होने के दर्द से लाचार वह माली ऋषि मार्कंडेय के आश्रम जा पहुंचा। ऋषि से मिलकर उस माली ने इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा।
माली की हालत देखकर ऋषि मार्कंडेय ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने को कहा और उसे इस व्रत का विधि बताया। योगिनी एकादशी व्रत रखने के फल स्वरुप वह अपने श्राप से मुक्त हो गया और भगवान विष्णु और ऋषि मार्कंडेय को धन्यवाद कहने लगा।