- भगवान शिव का ये मंदिर पांडवकालीन मंदिर के नाम से जाना जाता है
- अज्ञातवास में मंदिर का एक रात में आधा ही निर्माण करा सके थे पांडव
- 1060 ई में राजा मांबाणि ने मंदिर का पूरा निर्माण करवाया था
अंबरनाथ में भगवान अंबरेश्वर का मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर को पांडवकालीन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। असल में यह मंदिर पांडवों ने तब बनाया था जब वे अज्ञातवास में थे और इस मंदिर का निर्माण एक रात में किया गया था। हालांकि, ये मंदिर एक रात में पूरा नहीं बन सकता था और कौरवों कि सेना के आने के कारण मंदिर का निर्माण छोड़ कर पांडव यहां से चले गए थे। बाद में इस मंदिर का निर्माण 1060 ई में राजा मांबाणि ने बनवाया था। मंदिर में मौजूद शिलालेख से इस बात की जानकारी मिलती है। मंदिर की वास्तु कला और नैसर्गिक चमत्कार दूर-दूर तक फैली हुई है।
अनोखा है यहां का शिवलिंग
अंबरेश्वर मंदिर के बाहर एक नहीं दो नंदी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। साथ ही मंदिर में प्रवेश के लिए तीन मुखमंडप हैं। सभामंडप पहुंचने के बाद एक और सभामंडप है और इसके बाद 9 सीढ़ियां नीचे उतर कर गर्भगृह तक पहुंचा जा सकता है। सबसे अद्भुत और अलग यहां का शिवलिंग है। मंदिर की मुख्य शिवलिंग त्रैमस्ति की है और शिवलिंग के घुटने पर देवी पार्वती स्थापित हैं। शीर्ष भाग पर शिवजी नृत्य मुद्रा में नजर आते हैं।
भक्तों को जागृत स्थल महसूस होता है
मंदिर के गर्भगृह के पास ही एक कुंड है, जिसमें गर्म पानी निकलता है। यही एक गुफा भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके अंदर से रास्ता पंचवटी तक जाता है। बता दें कि अंबरनाथ मंदिर को यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत भी घोषित किया है। वलधान नदी के तट पर स्थित यह मंदिर आम और इमली के कई पेड़ों से घिरा हुआ है और यहां आने पर ही महसूस होता है कि ये जागृत स्थल है।
प्राचीन काल की ब्रह्मदेव की मूर्तियां भी स्थापित हैं
मंदिर में भगवान गणपति, कार्तिकेय, देवी चंडिका समेत कई अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहां देवी दुर्गा को असुरों का नाश करते हुए स्थापित किया गया है। मंदिर के अंदर और बाहर कम से कम ब्रह्मदेव की 8 मूर्तियां हैं। साथ ही इस जगह के आसपास कई जगह प्राचीन काल की ब्रह्मदेव की मूर्तियां हैं, जिससे पता चलता है कि, यहां पहले ब्रह्मदेव की उपासना होती थी।