Geeta Gyan In Lock down Part 3: पाप और पुण्य क्या है? मनुष्य ने चाहते या न चाहते हुए भी दूसरों से अपेक्षा करने लगता और ईर्ष्या करता है लेकिन भगवद गीता हमें सिखाती है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। लॉकडाउन में गीता के जरिए जानिए कि मनुष्य पाप करने के बावजूद किस तरह से भगवान को प्राप्त कर सकता है।
ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न कांड्ड.क्षति।
निर्द्वन्दद्वओ हि महाबाहो सुखं बँधातप्रमुच्यते।।
भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो पुरुष न ही किसी से ईर्ष्या करता है तथा न ही किसी से आशा करता है, वह कर्मयोगी है तथा उसको सदैव सन्यासी ही जानना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि राग, द्वेष इत्यादि द्वन्दों से रहित व्यक्ति सुखी रहते हुए संसार बंधन से मुक्त हो जाता है।
दार्शनिक व यथार्थ व्याख्या--
जब हम किसी से द्वेष रखते हैं तो उसी समय हमारा मन अपवित्र होना शुरू हो जाता है। जब हम किसी से कोई भी अपेक्षा रख लेते हैं तथा एक व्यक्ति ने मेरे कई काम किए तो हम बहुत खुश होते हैं परंतु जैसे ही वो किसी कारण वश एक दो कार्य नहीं कर पाता तो हम उससे नफरत करना प्रारंभ कर देते हैं। इसलिए किसी से ईर्ष्या रखना व किसी से आशा रखना दोनों ही गलत है तथा वो आपको जीवन में कभी न कभी बहुत दुःख देगी। कर्मयोगी निष्काम कर्म करता है। उसका मन गंगा की तरह निर्मल है। वह दूसरे की प्रगति को देखकर ईर्ष्या नहीं करता। वह किसी से यहां तक कि अपने पत्नी व संतान से भी कोई अपेक्षा नहीं रखता। ऐसा कर्मयोगी सन्यासी है क्योंकि वह हर कर्म में भगवान को देखते हुए हर कर्म उनको समर्पित करता है। संसार बन्धन से मुक्त होने के लिए इन दोषों से पहले मुक्त होइए। राग व द्वेष से रहित व्यक्ति हर पल भगवान से जुड़ा होने के कारण संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
वर्तमान परिदृश्य में अनुकरणीय-
वर्तमान परिदृश्य में हम ईर्ष्या व द्वेष से मुक्त होकर भगवान की भक्ति करते रहें। हर पल कृष्ण को अपने पास महसूस करें। किसी से कोई आशा ना करें। आकांक्षाओं का पूर्णतया परित्याग कर दें। अपने अंदर श्री कृष्ण भक्ति के दीप को जलने दें। हर पल जीवन की डोर उसको सौंप के निश्चिंत हो जाएं। ये भाव सदैव मन में रहे कि मेरे साथ तो हर पल कृष्ण है। जय श्री कृष्ण। हरे राम हरे राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।