- चाणक्य ने कहा है, शिष्य के पाप को गुरु भोगता है
- शिक्षक को अनुशासन और सख्ती कायम रखनी चाहिए
- मूर्ख छात्र को पढ़ाने से शिक्षक दुखी ही रहता है
Chanakya Neeti: आचार्य चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त को जब पहली बार देखा था, तभी वह पहचान गए थे कि नंद वंश को समूल नाश के लिए यही काम आ सकता है। चाणक्य ने अपने ज्ञान और समझदारी के बल पर यह पहचान की थी।
चंद्रगुप्त हालांकि उस समय बेहद ही सामान्य सा बालक था, लेकिन आचार्य चाणक्य ने उसके अंदर की प्रतिभा को पहचाना और उसे अपनी नीतियों और सिद्धांतों से निखार कर संपूर्ण भारत का सम्राट बना दिया था।
चाणक्य का मनना है कि हर छात्र सामान्य होता है, लेकिन उसे बदले की गुंजाइश कितनी है ये गुरु ही पकड़ सकता है। इसलिए हर शिक्षक को अपने छात्र के गुण को पहचनना जरूरी है और उस अनुसार उसे तराशना चाहिए। चाणक्य ने अपनी नीतियों में कुछ ऐसे संकेत दिए है, जिसे अपना कर शिक्षक भी बेहतर छात्र का निर्माण कर सकते हैं।
चाणक्य ने अपनी नीतियों में बहुत सख्त नियमों के साथ छात्र को प्रशिक्षित करने का निर्देश दिया है
- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यदि शिक्षक एक मूर्ख शिष्य को पढ़ाता है तो उससे ज्यादा दुखी कोई और नहीं हो सकता। मूर्ख को पढ़ना समय की बर्बादी है। ऐसे छात्र पर कभी समय बर्बाद न करें जो शिक्षा को महत्व न देता हो।
- चाणक्य ने अपनी नीतियों में कहा है कि बहुत अधिक प्यार-दुलार से बहुत दोष उत्पन्न हो सकते हैं, जबकि सख्ती और नियम के साथ शिक्षा देने से गुण का विकास होता है। इसलिए उन्होंने शिक्षकों को ही नहीं माता-पिता को भी कहा है कि वह अपने बच्चों को बहुत लाड़-प्यार से नहीं पालें, बल्कि अनुशासन और सख्ती जरूर रखें।
- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो शिष्य गलत कर्म या पाप करता है उसका फल उसका गुरु भुगता है। ठीक उसी तरह जिस तरह से एक राष्ट्र या जनता के किए गए पापों को राजा भोगता है, राजा के पाप पुरोहित और घर के मुखिया का पाप परिवार।
- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो भी शिक्षक मूर्ख को पढ़ता है वह कभी यश की प्राप्ति नहीं कर सकता। जिस तरह से एक दुष्ट और कुकर्मी राजा के राज्य में प्रजा सुखी नहीं होती और दुष्ट मित्र के साथ से मित्रता दुखी होती है उसी तरह से शिष्य की मूर्खता से गुरु यशस्वी नहीं हो सकता।
- आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यदि गुरु ने शिष्य को एक अक्षर का भी ज्ञान दिया हो तो उस शिक्षक के ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि पृथ्वी पर कोई ऐसी चीज नहीं जो गुरु ऋण को उतार सके।