- छठ पूजा 18 नवंबर से 21 नवंबर तक है
- 19 नवंबर को खरना का विधि विधान होता है
- इस दिन छठ पूजा के व्रती गुड़ की खीर और रोटी खाते हैं
नई दिल्ली: छठ महापर्व 18 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। यह पर्व चार दिनों का होता है जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समापन सप्तमी को सुबह भगवान सूर्य के अर्घ्य के साथ होता है। इस पर्व के तहत श्रद्धालु या व्रती नहाय-खाय के अगले दिन यानि 19 नवंबर को व्रतियों द्वारा निर्जला उपवास रखकर खरना किया जाएगा ।
खरना का महत्व
खरना में दूध, अरवा चावल व गुड़ से बनी खीर एवं रोटी का भोग लगाया जाता है । कार्तिक शुक्ल पंचमी को यह व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे यह खरना कहा जाता है। इस दिन बिना अन्न और जल के रहा जाता है। नमक और चीनी का प्रयोग बिल्कुल वर्जित होता है। गुड़ की बनी खीर वितरित की जाती है। छठ पर्व की शुरुआत का यह दूसरा दिन होता है। जो आहार व्रती ग्रहण करते हैं उसे रसियाव भी कहते हैं।
खरना का अर्थ शुद्धिकरण
छठ में खरना का अर्थ है शुद्धिकरण और यह शुद्धिकरण केवल तन न होकर बल्कि मन का भी होता है। इसलिए खरना के दिन केवल रात में भोजन करके छठ के लिए तन तथा मन को व्रती यानी श्रद्धालु शुद्ध करता है। खरना के बाद व्रती 36 घंटे का व्रत रखकर सप्तमी को सुबह अर्घ्य देते हैं।
खरना का प्रसाद- गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी
खीर के अलावा खरना की पूजा में मूली और केला रखकर पूजा की जाती है। इसके अलावा प्रसाद में पूरियां, गुड़ की पूरियां तथा मिठाइयां रखकर भी भगवान को भोग लगाया जाता है। छठी मइया को भोग लगाने के बाद ही इस प्रसाद को व्रत करने वाला व्यक्ति ग्रहण करता है। खरना के दिन व्रती इसी यही आहार को ग्रहण करता है।
खरना के बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत
इस दिन प्रसाद के रुप में रोटी और खीर ग्रहण करने की परंपरा है। सब कुछ नियम धर्म के मुताबिक होता है। घर के सभी सदस्य व्रती को पूरा सहयोग करते हैं। खरना 19 नवंबर को है। खरना के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपावास शुरू हो जाएगा जो कि 20 नवंबर की शाम अस्ताचलगामी सूर्य और 21 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण के साथ पूरा होगा ।
छठ पूजा के 4 दिनों की पूजा विधि क्या होती है?
1. पहला दिन नहाय खाय-कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से यह व्रत शुरू होता है। इसी दिन व्रती स्नान करके नए वस्त्र को धारण करते हैं।
2. दूसरा दिन खरना-कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोला जाता हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती गुड़ से बनी खीर और रोटी का भोजन करते हैं।
3. तीसरा दिन-इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं। टोकरी की पूजा कर व्रती सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं।
4. चौथा दिन-सप्तमी को प्रातः सूर्योदय के समय विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।