- चिंता को हरने वाली होती हैं देवी छिन्नमस्ता
- देवी की पूजा हमेशा शांत मन से ही करना चाहिए
- बुरे विचारों के साथ देवी की पूजा विपरीत फल देती है
देवी छिन्नमस्ता को माता चिंतपूर्णी का स्वरूप माना गया है। शिवपुराण और मार्कण्डेय पुराण में इस बात का जिक्र मिलता है कि देवी छिन्नमस्ता राक्षसों का संहार कर देवताओं को उनसे मुक्त कराया था।
देवी छिन्नमस्ता चिंतापूर्णी का स्वरूप है इसलिए इनकी पूजा कई मायकनों में उनके भक्त के लिए फलदायी होती है। चिंता को हर कर देवी अपने भक्तों के संकट को दूर करती है। साथ ही देवी सर्वसिद्धी को पूर्ण करने वाली भी हैं।
देवी का इसलिए व्रत करना और उनका विधिवत पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। बैसाख मास की शुक्ल पक्ष चर्तुदशी को छिन्नमस्ता जयंती भी मनाई जाती है।
देवी की पूजा हमेशा शांत भाव से और शुभकार्य के लिए करें
मां छिन्नमस्ता चिंताओं को हरने वाली हैं लेकिन इनकी पूजा में एक बात हमेशा ध्यान देनी चाहिए कि देवी की पूजा हमेशा शांत भाव से करें। उग्र या व्याकुलता से देवी की पूजा करना अथवा किसी गलत कार्य की पूर्ति के लिए देवी की पूजा करना देवी को क्रोधित कर देता है। शांत भाव से पूजा करने वाले को देवी का शांत स्वरूप का फल मिलता है, लेकिन उग्र मन से पूजा करने पर देवी उलटा प्रभाव देती हैं।
देवी की पूजा और स्वरूप को जानें
देवी अपने गले में हड्डियों की माला पहनती हैं और उनके कंधे पर यज्ञोपवीत है। देवी छिन्नमस्ता की नाभि में योनि चक्र पाया जाता है। देवी की आराधना दीवाली के दिन से शुरू करना बहुत ही शुभदायी माना गया है। हालांकि उनकी पूजा शुक्रवार को भी की जाती है।
छिन्नमस्ता देवी का वज्र वैरोचनी नाम जैन, बौद्ध और शाक्तों में भी मिलता है। देवी की दो सखियां रज और तम गुण की परिचायक हैं। देवी स्वयं कमल के पुष्प पर विराजमान हैं।
सखियों की भूख मिटाने को काट दी थी अपनी गर्दन
देवी छिन्नमस्ता ने अपनी सखियों की भूख को मिटाने के लिए अपनी गर्दन काट दी थी। दंतकथा के अनुसार एक बार देवी अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गयीं। स्नान के बाद सखियों ने देवी से कहा कि उन्हें भूख लग रही है।
देवी ने सखियों को कहा कि वह इंतजार करें वह कुछ व्यवस्था करती हैं, लेकिन सखियों ने तुरंत खाने की जिद्द की। इससे देवी उग्र हो उठी और अपनी ही गर्दन तलवार से काट दी। उनकी गर्दन से तीन धाराएं निकालीं।
तीन में से दो से सखियों की प्यास बुझायी और तीसरी से उनकी प्यास बुझी। तभी वह छिन्नमस्ता के नाम से मशहूर हैं। देवी दुष्टों के लिए संहारक और भक्तों के लिए दयालु हैं, इसलिए देवी की आराधना हमेशा सच्चे और निर्मल मन से करनी चाहिए।
शुक्रवार को करें देवी की ऐसे पूजा
देवी की पूजा मन में भी की जा सकती है। इसलिए शुक्रवार के दिन स्नान कर देवी का मन में स्मरण करें और उनके समक्ष लाल फूल चढ़ाएं। प्रसाद में हलवे का भोग लगाएं और मन ही मन उनसे अपनी मनोकामना बता दें। इसके बाद आप दुर्गा सप्तशती के पाठ कर लें।
मां छिन्नमस्ता का मंदिर
छिन्नमस्ता देवी का मंदिर झारखंड में स्थित है। यह मंदिर असम के कामख्या मंदिर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। यहां मां छिन्नमस्ता के मंदिर के अलावा शिव मंदिर, सूर्य मंदिर और बजरंग बली सहित सात मंदिर मौजूद हैं।