Geeta Gyan In Lock down Part 6: गीता: अध्याय 07 श्लोक 19-
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
भावर्थ- भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- जीवत्मा को अनेक जन्म के पश्चात जब वास्तव में ज्ञान हो जाता है तो वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आ जाता है। ऐसा महात्मा बहुत ही दुर्लभ होता है।
दर्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या- जीव अनेक जन्मों तक अपने श्रद्धानुसार व नियमानुसार भक्ति अनुष्ठानों को करता हुआ एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है जब उसको दिव्यज्ञान होता है।अब दिव्यज्ञान को समझना होगा। आत्मसाक्षात्कार का परमलक्ष्य श्री कृष्ण हैं। कई जन्मों की भक्ति के सतत अभ्यास से उसकी आसक्ति भौतिक पदार्थों से हटती जाती है और वह भगवान का होता चला जाता है तथा अंत में वह परमात्मा की शरण ग्रहण कर लेता है।
अब वह ज्ञान की इस स्थिति में आ गया है कि वह हर सुख दुख को भगवान का प्रसाद मान कर ग्रहण कर लेता है क्योंकि वो कृष्ण भक्ति प्राप्त कर चुका है इसलिए उसको किसी भी हर्ष व विषाद का आभाष नहीं होता है। अब वह केवल कृष्ण को ही भजता है।उसी का चिंतन करता है। भक्ति रस में मदमस्त ऐसा महात्मा दुर्लभ ही होता है क्योंकि अब उसको शरणागति प्राप्त हो चुकी है। अब उसके लिए भौतिक जगत व्यर्थ है व केवल श्री कृष्ण की शरणागति ही सर्वस्व है।
वर्तमान समय में इस श्लोक की प्रासंगिकता- आज जब हम भौतिक सुखों की तरफ दौड़ रहे हैं। हमने बड़े बड़े मकान,कई घर,महंगी कार,स्वर्ण व हीरे के आभूषण, पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए लालायित हैं।सोचो साथ क्या जाएगा?जाएगा सिर्फ आपका पुण्य,आपके अच्छे कर्म,दान व भक्ति।तो प्रयास उसका करें जो कई जन्मों तक काम आए।इसलिए समस्त कारणों के कारण भगवान की शरण में आ जाओ।अभी भी समय है।ऐसा करके आप दुर्लभ महात्मा बनके भगवान के प्रिय बन जाएंगे।