- गुरु गोविंद साहब का जन्म 1666 में पटना, बिहार में हुआ
- गुरु तेग बहादुर की मौत के बाद गुरु गोविंद साहब ने 6 साल की उम्र में संभाली कमान
- गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरु हैं
जिस समय भारत पर मुगलिया सल्तनत धर्म परिवर्तन और अत्याचार की इबादत लिख रहा था, उस दौर में हिंदु धर्म की रक्षा और उसके लोगों की सलामती के लिए सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर के यहां गुरु गोबिंद सिंह ने जन्म लिया। गुरु गोबिंद साहब का बचपन का नाम गोबिंद राय था। जो सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए। खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख धर्म को हथियार उठाने पर प्रेरित किया। अपनी पूरी उम्र दुनिया को समर्पित करने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने त्याग और बलिदान का जो अध्याय लिखा वो पूरी दुनिया के इतिहास में अमर हो गया। उनकी जयंती पर जानते हैं सिख धर्म के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के बारे में खास बातें।
जन्म से ही थे महान योद्धा
गुरु गोविंद सिंह जन्म से ही योद्धा थे। उन्हें राजाओं द्वारा प्रजा पर अत्याचार से घोर चिढ़ था, आम जनता और व्यक्तियों पर किसी राजा द्वारा अत्याचार होते देख वह किसी भी राजा से लोहा लेने के लिए तैयार हो जाया करते थे। यही वजह थी गुरु गोविंद सिंह जी ने औरंगजेब समेत गढ़वाल नरेश औऱ शिवालिक क्षेत्र के कई राजाओं से लोहा लिया। गुरु गोविंद सिंह खालसा पंथ के संस्थापक भी थे।
सवा लाख से एक लड़ाऊं चिड़ियो सो मैं बाज तड़ऊं तबे गोविंद सिंह नाम कहाऊं - यह पंक्ति गुरु गोविंद सिंह की वीरता को प्रकट करती है। खालसा पंथ की स्थापना के बाद औरंगजेब ने पंजाब के सूबेदार वजीर खां को आदेश दिया कि सिखों को मारकर गोविंद सिंह को बंदी बनाकर मेरे पास लाओ। लेकिन गोविंद सिंह ने मुठ्ठी भर सिख जांबाजों के साथ मुगल सेना से डटकर मुकाबला किया और मुगलों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। गोविंद सिंह ने मुगलिया सैनिकों को चिड़िया कहा और सिखो को बाज के रूप में संबोधित किया।
जरूरत मंद लोगों की सेवा करें
गुरु गोविंद सिंह ने हमेशा से अपने अनुयायियों को इस बात की संदेश दिया कि भौतिक सुख सुविधाओं और विलासितापूर्ण वस्तुओं में मत पड़िएं बल्कि इसकी जगह जरूरतमंद लोगों की सेवा और रक्षा करो। आपको बतां दें गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया गया।
अंतिम समय में पवित्र ग्रंथ को बताया उत्तराधिकारी
अपनी मृत्यु को समीप देख गुरु गोविंद सिंह साहब जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाय सभी सिखों को आदेश दिया कि मेरे बाद आप सब पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें। गुरु गोविंद साहब के इस आदेश के बाद पवित्र ग्रंथ को ही गुरु ग्रंथ साहब माना गया।