- क्या आपने कभी सोचा है कि ईस्टर संडे हर साल अलग-अलग तारीख को क्यों पड़ती है
- 22 मार्च से लेकर 25 अप्रैल तक इसक तारीख बदलती रहती है
- ईसाइयों का ये त्यौहार हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है
क्या आपने कभी सोचा है कि ईस्टर संडे हर साल अलग-अलग तारीख को क्यों पड़ती है? 22 मार्च से लेकर 25 अप्रैल तक इसक तारीख बदलती रहती है। ईसाइयों का ये त्यौहार हर साल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन प्रभु यीशु मसीह ने धरती पर पुनर्जन्म लिया था। जानते हैं हर साल क्यों बदलती है ईस्टर की तारीख-
शुरुआत में ईस्टर सेलिब्रेशन को लेकर खूब विवाद होता था। एक बार ईसाई समुदाय के लोगों ने जीसस के पुनर्जन्म की तारीख को याद रखना भूल गए थे। तब से ईस्टर सेलिब्रेशन ईसाइयों के लिए और जटिल हो गया। जेविश हॉलीडे कैलेंडर सूर्य और चंद्रमा के चक्र के आधार पर बना है इसलिए हर साल ईस्टर की तारीख बदलती रहती है।
शुरुआत में बसंत ऋृतु के बाद आने वाले पहले पूर्णिमा के बाद वाले रविवार को ईस्टर मनाया जाता था। इसके कैलेंडर में काफी अनिश्चितता है जिसके चलते हर साल इसकी तारीख अलग-अलग बदल जाती है। जब जीसस की मृत्यु हुई थी तब पूर्णिमा थी। लेकिन हर टाइम जोन में पूर्णिमा अपना समय व काल बदलते रहता है इसलिए गिरजाघरों ने ये फैसला किया कि पूर्णिमा के 14वें दिन के बाद आने वाले संडे को ईस्टर संडे की तरह मनाया जाएगा।
इसलिए ईस्टर की तारीख तय करने के लिए सबसे पहले चंद्रमा की स्थिति पर नजर रखा जाता है। लूनर कैलेंडर के कारण भी इसकी तारीख में बदलाव होते रहता है। पूर्व में जूलियन कैलेंडर का पालन किया जाता था इसलिए वे अलग तारीख को ईस्टर संडे मनाते थे।
इस दिन ईसा मसीह को पुनर्जीवन मिला था। 40 दिनों की अवधि के बाद ईस्टर का त्यौहार आता है जिसे ईसाइयों के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मार्च में पहली पूर्णिमा के बाद आने वाले पहले रविवार को ईस्टर मनाया जाता है। फूल, म्यूजिक, कैंडल और घंटियों के साथ चर्च में इसे सेलिब्रेट किया जाता है। केक काटकर ईसा मसीह के पुनर्जागरण को सेलिब्रेट किया जाता है।