- जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा बिना कथा के मानी जाती है अपूर्ण
- चील और सियार की प्रतिमा बना कर की जाती है पूजा
- चिल और सियार की कथा ही है पौराणिक कथा
Jitiya Vrat Katha(जितिया व्रत): जीवित्पुत्रिका व्रत में चील और सियारिन की पूजा होती है। मिट्टी से उनकी प्रतिमा बना कर पूजा की जाती है। जीवित्पुत्रिका व्रत में इनकी ही कथा भी कही जाती है। सुहागिन महिलाएं अपने बच्चों के नाम पर रक्षा धागा में बांध कर कौड़ी भी पहनती हैं। जितने पुत्र होते हैं उतनी कौड़ियों महिलाएं अपने गले में धारण करती हैं। यह पुत्र के नाम की कौड़ी होती है जिसे महिलाएं कम से कम सवा महीने लगातार पहने रहती हैं। इसके बाद इसे उतार कर जहां गहने आदि रखे जाते है वहां या मंदिर में रख दिया जाता है। तो आइए जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा क्या हैं।
Jitiya Vrat (जितिया व्रत): ये है चील और सियारिन की कहानी
आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु,आरोग्य व उनके कल्याण के लिए इस व्रत को करती हैं और इस कथा का वाचन करती हैं। ये कथा एक चील और सियारिन की है। एक जंगल में चील और सियारिन रहा करतीं थीं। दोनों मित्र थीं। एक बार कुछ स्त्रियों को व्रत करते हुए दोनों ने देखा तो उन्होंने भी व्रत करने का मन हुआ। दोनों ने एक साथ इस व्रत रखा और निर्जला व्रत करने लगीं लेकिन सियारिन को इतनी भूख लगने लगी की वह भख-प्यास से व्याकुल हो उठी। उससे भूख सही नहीं गई और उसने चील से छुप के खाना खा लिया।
वहीं चील ने पूरी निष्ठा के साथ इस व्रत का पालन किया। इसका परिणाम यह हुआ कि सियारिन के जितने भी बच्चे होते कुछ दिन जीने के बाद मर जाते थे, लेकिन चील के बच्चे दीर्घायु होते थे। तब सियारिन को इस बात का ज्ञात हुआ कि जीवित्पुत्रिका व्रत आधा दिन रहने से उसके बच्चे होते हैं कुछ दिन जीते हैं और उसके व्रत तोड़ देने के कारण कुछ ही दिनों में मर जाते है।
Jitiya Vrat (जितिया व्रत): व्रत पूजन में महिलाएं चढ़ाती चील-सियार को पूजन सामग्री
पुत्र की लंबी उम्र के लिए माताएं सूर्योदय से काफी पहले ओठगन की विधि पूरी की जाती है। इसके बाद व्रती जल पीना भी बंद कर देते हैं। इसके बाद पितराइनों (महिला पूर्वजों) व जिमूतवाहन को सरसों तेल व खल्ली चढ़ाती है। इस पर्व से जुड़ी कथा की चील व सियारिन को भी चूड़ा-दही चढ़ाया जाता है। साथ ही खीरा व भीगे केराव का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसी प्रसाद को ग्रहण कर व्रत पारण किया जाता है। मान्यता है कि कुश का जीमूतवाहन बनाकर पानी में उसे डाल बांस के पत्ते, चंदन, फूल आदि से पूजा करने पर वंश की वृद्धि होती है। इसके बाद निम्म मंत्र का जप किया जाता है।
यत्राष्टमी च आश्विन कृष्णपक्षे यत्रोदयं वै कुरुते दिनेश:।
तदा भवेत जीवित्पुत्रिकासा। यस्यामुदये भानु: पारणं नवमी दिने।
मान्यता है की जीवित्पुत्रिका व्रत करने से महिला को पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।