- देव दीपावली पर देवताओं की दीवाली होती है
- भगवान विष्णु के चार महीने बाद जागने की खुशी में होती है दिवाली
- काशी में इस दिन घाट दीपों की जगमगाहट से भर जाते हैं
कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव दिपावली होती है। इस बार देव दिपावली 29 नवंबर को मनाई जाएगी। हालांकि पूर्णिमा 30 नवंबर तकर रहेगी इसलिए दान-पुण्य का कार्य सुबह के समय करना ज्यादा उचित होगा। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के चार मास के जागने की खुशी में देवों की दीपावली होती है। इस दिन घरों में विशेष पूजा और व्रत के साथ दीपदान का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद रात में दीपदान किया जाता है। माना जाता है इस दीपदान से मनुष्य को अमोघ पुण्य का लाभ मिलता है।
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, इसी दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था। इसलिए भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाजता है और इस दिन भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था।
जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त (Kartik Purnima 2020 Date and Muhurat)
कार्तिक पूर्णिमा इस साल 30 नवंबर को है। हालांकि पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर से ही लग जाएगी इसलिए देव दीपावली 29 नवंबर को होगी और इस दिन दीपदान करना चाहिए। जबकि पूर्णिमा के दान 30 नवंबर को गंगा स्नान के बाद करने चाहिए।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 29 नवंबर रात 12 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 30 नवंबर रात 02 बजकर 59 मिनट तक
गंगा स्नान - 30 नवंबर
जानें, क्यों है इस दिन दीपदान का खास महत्व (Kartik Purnima Deep Daan)
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का भी विशेष महत्व होता है। देवउठान एकादशी के दिन भगवान विष्णु चातुर्मास के बाद उठते हैं और उनके उठने के खुशी में स्वर्ग में देवता दीपावली मनाते हैं। इसी खुशी में धरती पर भी देव दीपावली होती है और इस दिन एक दीप भगवान के नाम पर जरूर जलाना चाहिए। दीपदान से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा भी जरूर करनी चाहिए।
इस दिन काशी के घाटों को दीपों से दुल्हन की तरह सजाया जाता है
कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में विशेष उत्सव का आयोजन होता है। इस दिन घाटों को असंख्य दीपों से सजाया जाता है। मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवी-देवता देवलोक से धरती पर काशी में आते हैं और उनका स्वागत दीपों से किया जाता है।
ये है कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा (Kartik Purnima katha)
एक समय त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था और धीरे-धीरे वह अपना अधिकार स्वर्ग पर भी जमा लिया। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तपस्या की और उसके तप के प्रभाव से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। त्रिपुरासुर ने वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर कोई भी ना मार सके। ब्रह्माजी ने आशीवार्द दे दिया और आशीर्वाद पाते ही उसका अत्याचार बढ़ गया। उसके भय से सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर त्रिपुरासुर के अंत का उपाय पूछा तब ब्रह्मा जी ने का कि भगवान शंकर ही उसका नाश कर सकते हैं।
देवता शंकर जी के पास गए और उनसे उसके नाश की प्रार्थना की। तब महादेव ने उस राक्षस का वध किया। यही कारण है कि कई जगहों पर इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। वहीं इस दिन भगवान विष्णु ने भी मत्स्यावतार लिया था और संखासुर का वध किया और वेद मंत्रों की रक्षा करते हुए देवताओं को उनका वैभव वापस लौटाया। इस तरह भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेद स्रोत को बचाया और धर्म की रक्षा की, इसलिए इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है।