नई दिल्ली. कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में 15 अप्रैल तक लॉकडाउन है। इस दौरान टीवी पर भी रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक प्रोग्राम दोबारा प्रसारित हो रहे हैं। वहीं, इस लॉककडाउन में मौका है कि आप हिंदू धर्म की पवित्र ग्रंथ गीता का पाठ कर जीवन की नई राह देख सकते हैं। इसमें हम आपकी मदद करेंगे।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिस्यामी मा शुच।।
(गीता अध्याय 18, श्लोक 66)
भावार्थ: भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन,सभी धर्मों को अर्थात सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें त्यागकर तुम केवल एक कृष्ण को सर्वशक्तिमान परमेश्वर जानकर उसकी शरण में आ जाओ। ऐसे करने पर मैं तुमको सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति कराउंगा।
दार्शनिक अर्थ: यहां एक मात्र परमेश्वर कृष्ण ने शरणागति की बात की है। सर्वधर्मान्परित्यज्य का तात्पर्य सभी धर्मों का परित्याग नहीं है।धर्म का त्याग कैसे कर सकते हैं? इसका मतलब है कि हम निष्काम कर्म करते हुए व स्थितिप्रज्ञ रहते हुए अपने सम्पूर्ण कर्मों को कृष्ण में त्यागकर कृष्ण की सम्पूर्ण शरणागति ले लेना है।
शरणागति को जानना बहुत आवश्यक है।सरल शब्दों में कहें तो अपने जीवन रथ का सारथी कृष्ण को बनाकर निश्चिंत होकर उसके बताए मार्गों पर चलकर सम्पूर्ण सफलता भी उसी को सौंप देना। बिना कृष्ण के एक भी पल न रह पाना।
हर श्वांश में कृष्ण भक्ति की महक का पागलपन नशा बिल्कुल उन गोपियों की तरह जो भगवान कृष्ण के सिवा किसी को जानती ही नहीं हैं। अब रही बात पाप तथा पुण्य की। जब अपने आपको कृष्ण को सौंप दोगे तो पाप होगा ही नहीं। यदि कृष्ण भक्ति प्राप्त करने के पहले कोई पाप हुआ होगा तो उसके शरणागत होने के बाद वो ईश्वर समाप्त कर देंगे।
शरणागति कैसे हो
यह बहुत कठिन प्रश्न भी है तथा सरल भी है।बहुत से लोग प्रश्न करते हैं कि शरणागति के लिए क्या करें?बहुत आसान है पहले नाम को साधो।भगवान के प्रिय नाम को भजो। जब नाम भजोगे तो मन के अंधकार मिटेंगे व उसमें भगवान की भक्ति प्रवेश करेगी। फिर अभ्यास करो कि भगवान हर पल हमारे साथ है। इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा।
भय से मुक्ति मिलेगी। फिर अभ्यास करें कि ईश्वर हमारे हर कर्मों को देख रहा है ,इससे आप पाप नहीं करोगे। इस प्रकार सतत अभ्यास से कब आप कृष्ण के हो जाओगे या वो आपका हो जाएगा यह पता ही नहीं चलेगा। इस प्रकार आत्मा व परमात्मा एक हो जाएंगे।
कृष्ण अब आपके हो गए। भगवान जब अपनी शरणागति देते हैं तो सांसारिक जगत से मोह को भंग करते हैं क्योंकि उसको आप सम्पूर्ण चाहिए।भगवान भी भक्त के प्रेम का भूखा होता है। पूर्ण में पूर्ण जोड़ो या घटाओ पूर्ण ही बचेगा।इस प्रकार भगवान के शरणागत होने पर जीवत्मा पूर्ण हो जाती है।
आज इस श्लोक का महत्व
अहंकार का त्याग व भयमुक्त होकर भगवान कृष्ण के प्रति पूर्णतया निर्भर होकर सब उसी पर छोड़ देना तथा एकदम निश्चिंत हो जाना कि वो मेरी रक्षा करेगा।अंत में एक ही मन्त्र बचता है -श्री कृष्णम शरणं मम।