- सिंधारा दूज के दिन सुहागिनों को मिलता है श्रृंगार का उपहार
- मायके या ससुराल से आता है बहू-बेटियों के लिए सिंधारा
- सिंधारा की मेहंदी को ही सुहागिनें हाथों पर रचाती हैं
हरियाली तीज शुक्ल पक्ष की तृतीया को है और इससे पहले शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सिंधारा दूज मनाई जाती है। मुख्यत: सिंधोरा, मिठाई और श्रृंगार के सामान और परिधानों की एक भेंट होती हैं, जो बेटी या बहू को भेजी जाती है। यदि बेटी ससुराल में होती है तो मायके से सिंधोरा भेजा जाता है और यदि बहू मायके गई हो तो ससुराल से सिंधोरा जाता है। सिंधोरा दूज के दिन ही यह भेंट दी जाती है। इसलिए इस दिन का सुहागिनों के लिए खास महत्व होता है। सिंधोरे में आई मेहंदी को सुहागने अपने हाथों में रचाती हैं और अगले दिन तीज का व्रत करती हैं।
सिंधारा दूज को बहुत उत्साह का पर्व होता है। जिन लड़कियों की नई शादी होती है वह पहली तीज अपने मायके में मनाती हैं। ससुराल से आने वाले सिंधोरे का इस दिन बहुत महत्व होता है। सिंधोरे में आए कपड़े और सुहाग के सामान से सुहागिनें खुद को सजाती हैं और पूजा के दिन पहन कर व्रत करती हैं। सिंधोरे में आए उपहार आपस में बांटे भी जाते हैं। फल-मिठाईयां, उपहार, कपड़े और सुहाग के सामान को बांटने का भी रिवाज होता है।
सिंधारा दूज की जानें रीति-रिवाज
- सिंधारा दूज के दिन ही झूले भी पड़ते हैं। महिलाएं झूले झूलते हुए गाने गाती हैं और साथ ही मेहंदी आदि लगवाती है।
- सिंधारा में आई चीजें को बांटा जाता है। चूड़ियां और फल-मिठाई आदि इस दिन बांटने का रिवाज होता है।
- इस दिन सास बहू को खास उपहार देती है। सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और इस दिन बेटिया मायके से ससुराल भी आती हैं। मायके से बाया लेकर बेटियां ससुराल आती हैं।
- तीज के दिन शाम को देवी पार्वती की पूजा करने के बाद बाया को सास को दे दिया जाता है।
सिंधोरा दूज हरियाली तीज का ही एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह दिन बहू-बेटियों के लिए बहुत खास महत्व रखता है।