- सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा 16 नवंबर से शुरू है
- 41 दिन से चल रही पूजा का इस दिन मंडला पूजा के रूप में समापन होता है
- सबरीमाला मंदिर में 26 दिसंबर को होगी मंडला पूजा
सबरी माला मंदिर करीब 800 साल पुराना है और यहां भगवान अयप्पा की पूजा विधि-विधान से होती है। भगवान अयप्पा को प्रभु कार्तिकेय का ही रूप माना गया है क्योंकि भगवान नित्य ब्रह्मचारी माने गए हैं। भगवान अयप्पा के दर्शन पूजन की तैयारी 41 दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया को मंडल व्रतम के नाम से जाना जाता है। यह व्रत इस बार 16 नवंबर से शुरू हो गया था और 26 दिसंबर को मंडला पूजा के साथ संपन्न होगा।
सबरीमाला अयप्पा मंदिर में पूजा की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब सूर्यदेव धनु राशि में गोचर करते हैं और इसे धनु मास भी कहते हैं। धनुमास में मंडला पूजा 11 वें या 12 वें दिन मनाई जाती है। मंडला पूजा में 41 दिनों की लंबी तपस्या के अंतिम दिन विशेष पूजा होती है। मंडला पूजा से 41 दिन पहले यानी जब सूर्यदेव वृश्चिक राशि में होते हैं तब से भगवान अयप्पा की पूजा शुरू होती है। सबरीमाला अयप्पा मंदिर में मंडला पूजा और मकर विलक्कू दो सबसे प्रसिद्ध पर्व माने गए हैं और इस दिन भक्तों के लिए ये मंदिर खुलता है।
इस पूजा में किया जाता है गणेशजी का आव्हान
मंडला पूजा के दौरान भगवान अयप्पा को सर्वप्रिय तुलसी और रुद्राक्ष की माला पहन कर भक्त पूजा करते हैं। साथ ही शरीर पर चंदन का लेप लगाते हैं। 41 से 56 दिनों तक चलने वाली इस महापूजा के दौरान भक्त मन और तन की पवित्रता का पूरा ध्यान रखते हैं। भगवान गणपति के आहवान के साथ यह पूजा प्रारंभ होती है। पूजा के दौरान भगवान अयप्पा के दर्शन का भी बहुत महत्व है इसलिए कई भक्त मंदिर में दर्शन के लिए भी जाते हैं। महापूजा और मंदिर में दर्शन का महत्व
मान्यता है कि अगर यहां आने वाले श्रद्धालु तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, उपवास रखकर और सिर पर नैवेद्य यानी भगवान को चढ़ाए जाने वाला प्रसाद लेकर दर्शन के लिए आते हैं तो उनकी हर प्रकार की मनोकामना पूरी हो जाती है। मान्यता है कि मंडला पूजा में भगवान के दर्शन भर से भक्तों की मन की आस पूरी हो जाती है। साथ ही हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है।
सबरीमाला मंदिर का इतिहास
सबरीमाला मंदिर केरल के तिरुवंतपुरम स्थित पत्तनमतिट्टा जिले में है और यह मंदिर भगवान अय्यप्पा को समर्पित है। ये मंदिर दुनिया के बड़े तीर्थ में गिना जाता है। यहां हर साल भगवान के दर्शन के लिए लगभग 5 करोड़ लोग आते हैं। इस मंदिर की देखरेख और व्यवस्था त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के हाथ में है। 12वीं सदी से इस मंदिर में भगवान अय्यपा की पूजा की जाती है। दक्षिण पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का रूप) का पुत्र माना जाता है। जिनका नाम हरिहरपुत्र भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान की स्थापना स्वयं परशुरामजी ने की थी और यह विवरण रामायण में भी मिलता है। इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था और मकर संक्रांति के दिन यहां भगवान की स्थापना की गई थी।