- राधा-कृष्ण के इस मंदिर में मिलती है आत्मिक शांति
- प्रेम मंदिर में आने से मनुष्य के जीवन में प्रेम का संचार होता है
- क्लेश और कलह खत्म होता है और जीवन में प्रेम बढ़ता है
भगवान श्रीकृष्ण ने ही संसार को प्रेम से परिचित कराया और समझाया कि प्रेम वासना नहीं एक आत्मिक संबंध है। जो आत्मा से आत्मा का मिलन कराती है। प्रेम केवल प्रेमी-प्रमिका के बीच ही नहीं होता, बल्कि ये प्रेम किसी से भी हो सकता है। ईश्वर, मां-बच्चे, भाई-बहन, मित्र, जानवर या प्रकृति से भी प्रेम हो सकता है। इसलिए प्रेम बहुत ही निश्चल और पवित्र माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण की नगरी प्रेम की नगरी है और यहां भगवान के कई मंदिर भी हैं, लेकिन एक मंदिर पूरी तरह से प्रेम को समर्पित है। ये मंदिर प्रेम मंदिर के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा देवी के दर्शन मात्र से मनुष्य के जीवन का हर क्लेश मिट जाता है और आपसी संबंधों में प्रेम का संचार होता है। इस मंदिर की दीवारों पर हर तरफ राधा-कृष्ण की रासलीला नजर आती है। इस मंदिर का महत्व और वास्तुकला भी बहुत ही अलौकिक है। तो आइए आपका इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएं।
जोड़े में दर्शन करने से बढ़ता है प्रेम
प्रेम मंदिर में श्रीकृष्ण और राधारानी की भव्य प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को कृपालुजी महाराज के सौजन्य से बनाया गया था। यह मंदिर सफेद इटालियन संगमरमर के पत्थरो से तराश कर बनाया गया है। इस मंदिर की वास्तु कला भी बहुत अलौकिक है और खास बात ये है कि इस मंदिर में प्रवेश करते ही मानसिक शांति का अहसास होता है। इस मंदिर में यदि जोड़े साथ में दर्शन करें तो उनके बीच प्रेम और बढ़ता है और उन्हें भगवान का आशीर्वाद भी मिलता है।
54 एकड़ में बना है मंदिर
वृंदावन का प्रेम मंदिर 54 एकड़ में बनाया गया है। प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लंबा और 115 फुट चौड़ा है। बाग-बगीचों और फव्वारे के बीच भगवान श्रीकृष्ण और राधा की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारणलीला, कालिया नाग दमनलीला, झूलन लीलाएं का दर्शन बहुत ही मनोहारी है। पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तंभ हैं। इसमें किंकिरी और मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए हैं। गर्भगृह के अंदर और बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प और नक्काशी देखने को मिलेगी। मंदिर में संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर 'राधा गोविंद गीत' के दोहे लिखे गए हैं।
इस प्रेम मंदिर को बनाने की घोषणा जगतगुरु कृपालुजी महाराज ने साल 2001 में की थी। इसके 11 साल बाद करीब 1000 मजदूरों ने अपनी कला का बेजोड़ नमूना पेश करते हुए 2012 में इसे तैयार कर दिया था।