- बांस जलाने से पित्र दोष लगता है
- कृष्ण की प्रिय थी बांस से बनी बांसुरी
- शास्त्रों में बांस की लकड़ी जलाना वर्जित बताया गया है
Bamboo Stick Manyata and Reason: बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाना चाहिए यह प्रश्न बार बार सामने आता है। इससे क्या नुकसान हो सकते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण है। किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं। भारतीय सनातन परंपराओं में बांस का जलाना वर्जित है। कहा जाता है कि यदि बांस की लकड़ी को जलाया जाता है तो इससे वंश नष्ट हो जाता है। इससे पितृ दोष लगता है। इसके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण हमेशा अपने पास बांस की बांसुरी रखते थे। भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है।
शादी जनेऊ मुण्डन आदि में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है। अत: बांस को जलाना शुभ नहीं होता। ऐसा भी माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां बुरी आत्माएं नहीं आती हैं। हम अकसर शुभ कार्य जैसे हवन अथवा पूजन और अशुभ यानी दाह संस्कार जैसे काम के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है। लेकिन क्या आपने कभी किसी शुभ अथवा अशुभ कार्य के दौरान बांस की लकड़ी को जलाते हुए देखा है।
पढ़ें- 10 या 11 अप्रैल - जानें कब है राम नवमी और क्या है पूजा मुहूर्त
वंश वृद्धि में घातक है बांस जलाना
भारतीय संस्कृति परम्परा और धार्मिक महत्व के अनुसार हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है। लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं है। हिन्दू धर्मानुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है। बाँस वंश बेल वृद्धि का घोतक माना गया है। इसीलिए जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है। उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे। शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धूपबत्ती ही लिखा हुआ मिलता है। अगरबत्ती बांस और केमिकल से बनाई जाती है, जिसका सेहत पर बुरा असर होता है।
इसका वैज्ञानिक कारण भी जान लीजिए
बांस में लेड और हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनता है, जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है। हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है। यहां तक कि चिता में भी नहीं जला सकते उस बांस की लकड़ी को हम लोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट रसायन का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है। जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक व हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुंचाती है। इसकी लेश मात्र उपस्थिति केंसर अथवा मस्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता। सब जगह धूप ही लिखा है। हर स्थान पर धूप दीप नैवेद्य का ही वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में बाहरी आक्रमण कारियों के आगमन के साथ ही शुरू हुआ था। इसीलिए अगरबत्ती की जगह धूप का ही उपयोग करना भी शास्त्रों में बताया गया है। धूप बहुत अच्छी होती है। इसलिए ऋषि मुनि भी हवन यज्ञ आदि करते रहे है। धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है। स्थान पवित्र हो जाता है और मन को शान्ति मिलती है। इनसे नकारात्मक ऊर्जाओं वाली वायु शुद्ध हो जाती है। इसलिए प्रतिदिन धूप जलाना अति उत्तम और बहुत ही शुभ है।
Spiritual (डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)