- विधि-विधान से नींव पूजन करें
- दिशाओं का विशेष ध्यान रखें
- देवी देवताओं का आह्वान करें
Sarp And Kalash Sthapana Importance: हिंदू धर्म शास्त्रों में किसी भी कार्य को करने से पहले उस का विधान बताया गया है। पौराणिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी शुभ कार्य करने से पहले देवी देवताओं व अपने इष्ट का आह्वान किया जाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है कि पृथ्वी के नीचे पाताल लोक है। इसके स्वामी शेषनाग हैं। अतल से दस हजार योजन नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे सतल इसी क्रम से सब लोक स्थित हैं। अतल, वितल, सतल, तलातल, महातल, रसातल व पाताल ये सातों लोक पाताल स्वर्ग कहलाते हैं। इनमें भी काम, भोग, ऐश्वर्य, आनन्द, विभूति ये हैं।
दैत्य, दानव, नाग ये सब वहां आनन्दपूर्वक भोग-विलास करते हुए रहते हैं। इन सब पातालों में अनेक पुरियां प्रकाशमान रहती हैं। इनमें देवलोक की शोभा से भी अधिक वाटिका उपवन हैं। इन पातालों में सूर्य आदि ग्रहों के न होने से दिन रात्रि का विभाग नहीं है। इस कारण काल का भय नहीं रहता है। यहां बड़े-बड़े नागों के सिर की मणियां अंधकार दूर करती रहती हैं। पाताल में ही नाग लोक के पति वासुकी आदि नाग रहते हैं। श्री शुकदेव के मतानुसार पाताल से तीस हजार योजन दूर शेषजी विराजमान हैं। शेषजी के सिर पर पृथ्वी रखी है। जब ये शेष प्रलय काल में जगत के संहार की इच्छा करते हैं। तो क्रोध से कुटिल भृकुटियों के मध्य तीन नेत्रों से युक्त 11 रुद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में शेषनाग के मस्तिष्क पर पृथ्वी टिकी होने का उल्लेख मिलता है।
शेषनाग समस्त नागों के राजा हैं
भगवान ने विश्वरूप अनंत नामक देव स्वरूप शेषनाग को उत्पन्न किया जो पर्वतों सहित इस सारी पृथ्वी को तथा भूतमात्र को धारण किए हुए है। हजार फनों वाले शेषनाग समस्त नागों के राजा हैं। भगवान की शव्या बनकर सुख पहुंचाने वाले उनके अनन्य भक्त हैं। बहुत बार भगवान के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित भी रहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के 10 वे अध्याय के 29 वे श्लोक में भगवान कृष्ण ने कहा है। मैं नागों में शेषनाग हूं।
इसी वजह से मकान की नींव में सर्प और कलश दबाए जाते हैं
नींव पूजन का पूरा कर्म कांड इस मनोवैज्ञानिक विश्वास पर आधारित है। जैसे शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए है। ठीक उसी प्रकार मेरे इस भवन की नींव भी प्रतिष्ठित किए हुए चांदी के नाग के फण पर पूर्ण मजबूती के साथ स्थापित रहे। शेषनाग क्षीरसागर में रहते हैं। इसलिए पूजन के कलश में दूध दही घी डालकर मंत्रों से आह्वान कर शेषनाग को बुलाया जाता है। ताकि वे साक्षात उपस्थित होकर भवन की रक्षा का भार वहन करें। विष्णुरूपी कलश में लक्ष्मी स्वरूप सिक्का डालकर पुष्प व दूध पूजन में अर्पित किया जाता है, जो नागों को अतिप्रिय है। भगवान शिवजी के आभूषण तो नाग हैं ही। लक्ष्मण और बलराम शेषावतार माने जाते हैं। इसी विश्वास से यह प्रथा जारी है।
नींव में यह सब वस्तुएं जरूर स्थापित करें
नींव किसी घर की सबसे अहम चीज होती है। न केवल मजबूती के लिए बल्कि घर की सुख-शांति और विकास के लिए भी जरूरी होती है। ज्योतिष में घर में खुशियों की शुरुआत नींव से मानी जाती है। ज्योतिष विज्ञान भी कहता है यदि घर की नींव बेहतर होगी तो घर में अपने आप खुशियों का वास होगा। नींव पूजन के समय कुछ चीजें याद से इसमें स्थापित करानी चाहिए। इसमें एक छोटे कछुए के ऊपर चांदी या तांबे का कलश बनावा कर स्थापित करें। साथ ही कलश के अंदर चांदी के नाग नागिन का जोड़ा, लोहे की चार कील, हल्दी की पांच गांठें, पान के 11 पत्ते, तुलसी की 35 पत्तियां, मिट्टी के 11 दीपक, 11 सिक्के, आटे की पंजीरी, फल, नारियल, गुड़, पांच चौकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, पंच रत्न, पंच धातु रखना चाहिए। इसके बाद सारी सामग्री को कलश में रखकर कलश का मुख लाल कपड़े से बांधकर नींव में स्थापित कर देना चाहिए।
Spiritual (डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)