- 16 भागों में बांटी गई है गणपति समंत्रक पूजा विधि
- भगवान की पूजा और पूजन सामग्री क्रम से चढ़ाना चाहिए
- पूजा के बाद गलतियों की माफी के लिए क्षमा याचना भी करें
भगवान गणपति जी की यदि विधिवत पूजा की जाती है तो वह समंत्रक विधि से ही की जानी चाहिए। तभी पूजा का संपूर्ण लाभ मिलता है। समंत्रक विधि को 16 उपचार पूजन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान की पूजा को 16 भागों में बांटा गया है। पुराणों में भगवान गणपति की विधिवत पूजा 16 भाग में बांट कर किए जाने का उल्लेख है। पूजा करते समय पूजन सामग्री से लेकर उसे चढ़ाने तक क्रम बंटा हुआ है और ये क्रम ही समंत्रक विधि कहलाता है। शास्त्रों में भगवान गणेश की पूजा में आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, द्रव्य दक्षिणा, आरती, परिक्रमा (प्रदक्षिणा) को ही 16 उपचार माना गया है।
तो आइए जानें, क्या है ये 16 उपचार विधि और इसे कैसे किया जाए
- संकल्प: भगवान की पूजा से पूर्व संकल्प लेना होता है। हाथ में जल फूल और अक्षत लेकर गणपति जी की पूजा का संकल्प लें। संकल्प लेते हुए पूजन का दिन, वर्ष, उस वार, तिथि, स्थान और अपने नाम को लो। यदि पूजा किसी मनोकामना के लिए की जा रही है तो नाम के बाद अपनी मनोकामना भी बोलें। इसके बाद हाथों में लिया जल जमीन पर छोड़ दें।
- आवाहन करना: दूसरे क्रम में भगवान गणपति जी का आवाहन करें। इसके लिए “ऊँ गं गणपतये नमः आव्हानयामि स्थापयामि” मंत्र का जाप करें और भगवान की प्रतिमा या तस्वीर पर अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद गणपति जी को बैठने के लिए आसन दें और इसके लिए “ऊँ गं गणपतये नमः आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि” बोलते हुए प्रभु को आसन दें। आसन देने हुए “ऊँ गं गणपतये नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि” मंत्र जा करें।
- अर्घ: अर्घ का मतलब है प्रभु का हाथ धुलाना। अब अपने आचमन में जल, पुष्प, अक्षत लें कर “ऊँ गं गणपतये नमः हस्तयो: अघ्र्यं समर्पयामि” मंत्र पढ़ते हुए प्रभु का हाथ धुलाएं। इसके बाद प्रभु का मुख शुद्धि करण के लिए “ऊँ गं गणपतये नमः आचमनीयम् जलं समर्पयामि” मंत्र पढ़ें और आचमन के लिए प्रभु के समक्ष जल छोड़ें।
- पंचामृत से स्नान कराना: गणपति जी को स्नान कराते समय “ऊँ गं गणपतये नमः पंचामृतस्नानं समर्पयामि” मंत्र जाप करते हुए पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत में दूध, दही, शक्कर, शहद व घी होना चाहिए। पंचामृत स्नान के बाद प्रभु को शुद्ध जल से स्नान कराते हुए “ऊँ गं गणपतये नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि” मंत्र पढ़ें।
- वस्त्र अर्पित करना: प्रभु को वस्त्र पहनाते समय ‘ऊँ गं गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रम् समर्पयामि” का जाप करें।
- गन्ध अर्पित करना: अब पूजा की बारी आती है। गन्ध और अन्य सुगंधित पूजन सामग्री को अर्पित करते हुए “ऊँ गं गणपतये नमः गन्धं समर्पयामि” मंत्र पढ़ें। इसी समय आप प्रभु को चंदन, रोली, हल्दी, मेहंदी, अष्टगंध इत्यादि सुगंधित द्रव्यों भी लगाएं। इसके बाद पुष्प अर्पित करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः पुष्पं समर्पयामि मंत्र बोलें।
- अक्षत अर्पित करना: अक्षत अर्पित करते हुए “ऊँ गं गणपतये नमः अक्षताम् समर्पयामि मंत्र का जाप करें। अब धूप दिखाते हुए “ऊँ गं गणपतये नमः धूपम् आघर्पयामि” मंत्र का जाप करें।
- दीप दिखाना: गणपति जी को दीप दिखाते हुए “ऊँ गं गणपतये नम दीपम् दर्शयामि” मंत्र का जाप करें।
- आरती करें: भगवान की आरती की शुरुआत करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः आरार्तिक्यम् समर्पयामि मंत्र बोलें।
- प्रदक्षिणा : हाथ में फूल लेकर गणपति जी की परिक्रमा करें। परिक्रमा करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः प्रदक्षिणा समर्पयामि मंत्र का जाप करें।
- पुष्पांजलि अर्पित करें: प्रभु को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः पुष्पांजलि समर्पयामि मंत्र पढ़ें।
- नेवैद्य अर्पित करना: भगवान को पंचामृत का भोग लगाते हुए ऊँ गं गणपतये नमः नेवैद्यम् निवेदयामि बोलें।
- फल समर्पित करना: अब फल समर्पित करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः फलम् समर्पयामि बोलें। फल के बाद मिष्ठान अर्पित करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः मिष्ठान्न भोजनम् समर्पयामि मंत्र पढ़ें। फिर गणपति जी को पंचमेवा का भोग लगाते हुए ऊँ गं गणपतये नमः पंचमेवा भोजनम् समर्पयामि मंत्र पढ़ें।
- आचमन करना: भोग के बाद भगवान को आचमन कराना चाहिए। आचमन कराते हुए ऊँ गं गणपतये नमः नेवैद्यांति जलं आचमनम् समर्पयामि मंत्र पढ़ें।
- ताम्बूल: ताम्बूल यानी पान खिलाना। प्रभु को ऊँ गं गणपतये नमः तांबूल समर्पयामि कहते हुए पान अर्पित करें। इसके बाद द्रव्य यानी दक्षिणा समर्पित करते हुए ऊँ गं गणपतये नमः यथाशक्ति द्रव्यदक्षिणा समर्पयामि मंत्र पढ़ें।
- क्षमा-प्रार्थना: हर पूजा के अंत में क्षमा याचना जरूर करनी चाहिए। पूजन में हुई भूल के लिए गणपति से क्षमा मांगे और इसके बाद प्रसाद ग्रहण करें।
इन 16 उपचार के बाद ही गणपति भगवान की पूजा पूर्ण मानी जाती है।