- अंधक नाम दैत्य से रक्षा के लिए गणपति बने थे स्त्री
- अंधक के खून से अंधका राक्षसी का जन्म होता जा रहा था
- देवी शक्ति से ही उसे खत्म किया जा सकता था
गणेशजी का स्त्री रुप विनायकी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में गणपति जी के स्त्री रूप का जिक्र है और विनायक नाम भी उनके स्त्री नाम विनायकी से ही मिला है। समय और जरूरत पर कई देवताओं ने स्त्री रूप धारण किया है। सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा, रामभक्त हनुमान, देवराज इंद्र और अर्जुन भी स्त्री रूप धारण कर चुके हैं। मानव कल्याण के लिए देवताओं ने यह रूप धारण किया था। इसी क्रम में गणपति जी को भी अपने पिता शिवजी की रक्ष्ज्ञा के लिए स्त्री रूप धारण करना पड़ा था। धर्मोत्तर पुराण में गणेशजी का स्त्री रुप विनायकी का वर्णन किया गया है इसके अलावा वन दुर्गा उपनिषद में भी गणेश जी के स्त्री रूप का उल्लेख मिलता है। कई जगह उनके नाम को गणेश्वरी से भी पुकारा जाता है।
दैत्य अंधक अपहरण की कोशिश कर रहा था
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य अंधक की नजर पार्वती पर पड़ी तो वह उन्हें अपनी अर्धांगिनी बना लेना चाहा। इसके लिए वह देवी पार्वती का अपहरण करने का प्रयास कर रहा था कि पार्वती माता ने शिवजी को अपनी रक्षा के लिए आवाज दी। शिवजी को दैत्य का ये दुस्साहस देख कर क्रोध आ गया और वह उसके अपने त्रिशूल को उस पर फेंक दिए। त्रिशूल उसके आर-पार हो गया।
अंधक के खून से पैदा होता था नया अंधक
अंधक के खून से राक्षसी अंधका पैदा होती जा रहा थी। उसे यह आशीर्वाद था कि धरती पर उसके खून के गिरते ही दूसरा अंधक पैदा हो जाएगा। त्रिशूल के प्रहार से उसके रक्त के एक-एक बूंद से अंधक का निर्माण होता जा रहा था। माता पार्वती को देख कर यह समझ आ गया कि उसे खत्म करने के लिए दैवीय शक्ति ही काम आ सकती है। माता को यह ज्ञात था कि एक दैवीय शक्ति के भीतर दो तत्व मौजूद होते हैं। पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और दूसरा स्त्री तत्व, जो उसे शक्ति प्रदान करता है। इसलिए देवी पार्वती ने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया, जो शक्ति का ही रूप हैं। सभी देवियां वहा उपस्थित हुईं और अंधक दैत्य के खून गिरने से पहले ही अपने भीतर समा लेतीं लेकिन दैत्य अंधका का उत्पन्न होना कम तो हुआ लेकिन बंद नहीं।
गणपति जी स्त्री रूप में पहुंच किए अंत
अंधक के गिरते हुए रक्त को खत्म करना जब संभव प्रतीत नहीं हुआ तो गणपति जी स्त्री रुप में वहां आ गए। विनायकी के रूप में प्रकट होकर गणेशजी ने अंधक का सारा रक्त पी लिया और सभी दैवीय शक्तियों के स्त्री रुप की मदद से अंधका का सर्वनाश हो गया।