- 21 जून के बाद 5 जुलाई को फिर से उपच्छाया चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है
- ग्रहण का सूतक काल ऐसे तो 9 घंटे पहले शुरू होता है लेकिन उपच्छाया चंद्र ग्रहण में सूतक का प्रभाव नहीं होता
- पुराणों के अनुसार, इस चंद्र ग्रहण की कथा समुद्र मंथन और विष्णु जी के कुर्म अवतार से जुड़ी है
साल 2020 में अभी तक दो चंद्र ग्रहण और एक सूर्य ग्रहण लग चुके हैं। साल का चौथ ग्रहण अब 5 जुलाई को लगेगा। हालांकि ये सभी देशों में दिखाई नहीं देगा। ये नॉर्थ और साउथ अमेरिका और यूरोप में दिखेगा और साथ ही अफ्रीका के कुछ पश्चिमी हिस्सों में नजर आएगा। बता दें कि ये ग्रहण उपछाया होगा जिसे अंग्रेजी में Penumbral Eclipse भी कहते हैं।
क्या होता है उपच्छाया ग्रहण / Upachaya Chandra Grahan Kya hota hai
चंद्र ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य एक सीध पर होते हैं और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। लेकिन उपच्छाया ग्रहण में चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में छिपता नहीं है बल्कि यह पृथ्वी की छाया के बाहरी किनारे (पृथ्वी की उपछाया) से होकर गुजर जाता है।
July 5 Upachaya Chandra Grahan timings in India
ये चंद्र ग्रहण जब लगेगा, उस समय भारत में दिन का उजाला होगा। इस वजह से देश में नजर नहीं आएगा। वहीं ये ग्रहण 2 घंटे और 43 मिनट तक रहेगा। भारतीय समय के अनुसार, ग्रहण की शुरुआत सुबह 8:38 बजे से होगी। यह पीक पर सुबह के 9:59 बजे पर होगा। और समाप्त 11:21 बजे होगा।
Chandra Grahan July 5 Sutak Timings
ऐसे तो ग्रहण के 9 घंटे पहले से सूतक लगने शुरू हो जाते हैं। इस दौरान पूजा पाठ और अन्य कार्य वर्जित माने गए हैं। लेकिन उपच्छाया चंद्र ग्रहण में सूतक का प्रभाव नहीं माना जाता है। लेकिन ग्रहण की अवधि में सात्विक नियमों का पालन करें और ग्रहण के बाद गंगाजल छिड़क कर घर को शुद्ध कर लें।
Chandra Grahan ki Pauranik Katha with Kurm Avtar
बता दें कि भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए के अवतार में क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस दौरान अमृत को लेकर देवों और असुरों में लड़ाई हो गई। तब विष्णु ने मोहिनी के रूप में अमृत बांटना शुरू किया। इसी बीच स्वरभानु असुर छल से देवताओं के बीच आकर बैठ गया और अमृत गले तक ले गया। लेकिन चंद्र और सूर्य उसे पहचान गए। उनके बताने पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सिर काट दिया।
स्वरभानु का सिर राहु बना और धड़ केतु के रूप में अमर हो गया। भेद खोलने के कारण ही राहु और केतु की चंद्र और सूर्य से दुश्मनी हो गई। कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र को कुछ समय के लिए निगलता है और वे केतु से बाहर आते हैं।