- नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है।
- माता का यह स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय और अत्यंत भव्य है।
- माता के इस स्वरूप को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी कहा जाता है।
Navratri 2022 second Day, Maa Brahmcharini Vrat Katha In Hindi: नवरात्रि के दूसरे दिन देवी भगवती के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। माता का यह स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय और अत्यंत भव्य है, माता के एक हांथ में कमंडल और दूसरे हांथ में जप की माला विराजमान है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह माता का अविवाहित स्वरूप है। नवरात्रि के दूसरे दिन जानिए मां ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा।
माता के इस स्वरूप को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी कहा जाता है। ब्रह्म में लीन और कठोर तपस्या के कारण माता के इस स्वरूप को ब्रह्मचारिणी (Ma Brahmcharini vrat kahani in hindi) कहा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और भोलेनाथ को पति स्वरूप प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक ब्रह्मचारिणी का रूप धारण कर कठोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के रूप में स्वयं को यज्ञ की अग्नि में भस्म करने वाली माता ने पर्वतराज हिमालय के यहां मां पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता ने इस जन्म में भी भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या की।
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केवल फल-फूल खाकर बिताए हजार साल (Navratri Day 2 vrat katha in hindi)
माता ने करीब एक हजार वर्षों तक केवल फल फूल खाकर बिताया और सौ वर्षों तक जमीन पर निर्वाह किया तथा सैकड़ो वर्षों तक निर्जला उपवास रखा। इतना ही नहीं, माता ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट को भी सहन किया और तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बेलपत्र का सेवन कर भगवान शिव की अराधना करती रही। इसके बाद मां पार्वती ने बेलपत्र भी खाना छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रही। माता की कठिन तपस्या को देख देवी देवता व ऋषि मुनि चिंतित हो गए और मां ब्रह्मचारिणी की तपस्या की सराहना की। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया और पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र ( Maa Brahmacharini Mantra)
या दवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ओम देवी ब्रह्मचारिण्ये नम:।तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।।
शंकराप्रिया त्वहिं भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मरिणी प्रणमाम्यहम्।।