- देवी शीतला को संक्रामक रोग हरने वाली माना गया है
- देवी की पूजा से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों का मुक्ति मिलती है
- स्कंद पुराण में भी देवी शीतला के महत्व और शक्ति का बखान मिलता है
आदिशक्ति का स्वरूप माता शीतला माता आरोग्य की देवी मानी गई हैं। प्राचीन समय में भी लोग देवी की पूजा-अर्चना रोगों से मुक्ति पाने के लिए किया करते थे। मान्यता है कि देवी की पूजा से संक्रामक रोगों से बचाव होता है। यही कारण है कि प्राचीन समय में भी लोग जब भी किसी संक्रामक रोग से घिरते थे तब वैद्य से इलाज के साथ देवी की पूजा-अर्चना भी किया करते थे। देवी की पूजा से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों का मुक्ति मिलती है।
मौसम में बदलाव जब भी होता है संक्रामक रोग तेजी से फैलते हैं। ऐसे में देवी की पूजा करने से आप इन रोगों से परिवार को बचाए रख सकते हैं। हालांकि रोग का इलाज कराना भी उतना ही महत्वपूर्ण हैं जितनी पूजा। इसलिए इलाज के साथ पूजा और प्रार्थना करनी चाहिए।
माता शीतला की पूजा विधि
स्कंद पुराण में भी देवी शीतला के महत्व और शक्ति का बखान मिलता है। देवी का वाहन गर्दभ है और वह हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं। मान्यता है कि इन सब चीजों का संदर्भ रोगों मुक्ति से हैं। मान्यता है कि जब भी किसी को संक्रामक रोग होता है तो सर्वप्रथम देवी के नाम से कुछ दक्षिणा रोगी के ऊपर न्योछार कर रखा जाता है। बाद में देवी स्थान पर जा कर इस दक्षिणों को चढ़ा दिया जाता है। साथ ही स्कंद पुराण में शीतलाष्टक पाठ करने का भी महत्मय बताया गया है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर जी ने की थी और यह स्तोत्र पढ़ने से रोग-ब्याद दूर होते हैं। देवी की आराधना करते हुए इस निम्न मंत्र का जाप हमेशा करना चाहिए।
वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम।।
शुक्रवार के दिन शीतला देवी की पूजा-अर्चना के साथ उनके नाम से व्रत करना भी बहुत शुभदायी माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में चेचक, खसरा, दाह, ज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े और नेत्रों के रोग आदि मुक्त करती हैं। देवी की पूजा में खीर और मिठाई के साथ फल चढ़ना चाहिए। पूजा के बाद देवी की आरती कर पूजा पूर्ण करें।
ऐसे करें देवी शीतला की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता...
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता...
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता...
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता...
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता...
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता...
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता...
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता...
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता...
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता...
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।
जय शीतला माता...।
देवी की पूजा से घर-परिवार में सुख-शांति आती है और हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है।