- बूढ़े किसान ने सबसे काबिल बेटे को सौंपे अपने खेत
- तीनों की परीक्षा लेकर किया सही चुनाव
- पढ़िए गहरी शिक्षा देने वाली दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी
मुंबई: सुमेरपुर गांव के किसान हरीश को अपनी पत्नी कंचन से तीन बेटे हुए। जब हरीश की उम्र बहुत ज्यादा हो गई तो उसने खेतों में काम करना छोड़ दिया। जब किसान हरीश ने अपनी पत्नी से बताया कि उससे अब काम नहीं होता तो पत्नी ने जवाब दिया कि उसे काम का बोझ तीन बेटों में बांट देना चाहिए।
हरीश की चिंता ये थी कि वह खेतों की जिम्मेदारी किसे दे और कौन सबसे होनहार बेटा है ये कैसे पता चलेगा। पत्नी ने हरीश को तीनों की परीक्षा लेने की सलाह दी। इस बात को मानते हुए अगली सुबह हरीश ने तीनों बेटों कमलेश, महेश और जिग्नेश तीनों को बुलाया और बताया कि वह अब खेतों की जिम्मेदारी उन्हें देना चाहता है। तीनों बेटों ने एक एक करके खुद को इस सवाल पर एक दूसरे से बेहतर बताया। हरीश ने कहा इस बात का फैसला वह खुद करेगा।
अगली सुबह हरीश ने तीनों बेटों को गाय के बाड़े के पास बुलाया और कहा इस बाड़े में तीन जादुई गायें हैं और तीनों बेटों को एक-एक गाय पालनी हैं और साथ ही खेत पर काम भी करना है। तीनों में से जो सबसे ज्यादा ईमानदार मेहनती और काबिल होगा, 10 दिन बाद उसकी गाय सोने की बन जाएगी और खेत उसी बेटे को दिए जाएंगे। इसी के साथ तीनों बेटों को 10 दिन का समय मिला और 1-1 गाय लेकर तीनों खेतों पर चले गए।
तीनों बेटों को गाय का ख्याल भी रखना था और खेत पर काम भी करना था। दो दिन तक तो तीनों ध्यान से गाय को रखते हैं लेकिन तीसरे दिन से महेश और कमलेश गाय की सेवा से चिढ़ने लगते हैं। सबसे बड़ा बेटा कमलेश खेत पर काम करने के बजाय सिर्फ गाय के पास बैठा रहता और चारा खिलाता रहता। दूसरे बेटे का भी यही हाल था। लेकिन तीसरा बेटा जिग्नेश ईमानदारी से काम करते हुए गाय की सेवा भी करता और साथ में खेती करते हुए बुवाई करने भी जाता। इस तरह 10 दिन बीत गए।
अब तीनों बेटों की अपने पिता से मिलने की बारी थी। कमलेश ने सोचा कि उसने अपना काम ठीक से नहीं किया, इसलिए जमीन उसे नहीं मिलेगी और ना ही पिता के कहे अनुसार गाय सोने की बनी थी, ऐसे में उसने गाय को सुनहरे रंग से रंग दिया ताकि ऐसा लगे कि उसकी गाय सोने की हो गई है। महेश ने भी डर के मारे यही तरीका अपनाते हुए सुनहरा रंग गाय पर चढ़ा दिया। कमलेश और महेश की गाय देखकर पिता कमलेश हैरान रह गया और इसी समय जिग्नेश मौके पर पहुंचा लेकिन उसकी गाय तो पहले की तरह ही सफेद थी।
छोटे बेटे ने माफी मांगी की वह पिता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका और कहा कि उसने गाय की सेवा के साथ दूध बेंचकर कुछ पैसे जमा किए हैं और उसने पैसे पिता को देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। बाकी दोनों बेटों ने पूछा की शर्त के मुताबिक जादूई गाय तो उनके पास हैं तो बूढ़े किसान ने कहा कि यह कोई जादुई गाय नहीं हैं और ना ही सोने की बन सकती हैं। ये तो सिर्फ परीक्षा लेने के लिए बेटों से बोली गई बात थी। रंग चढ़ाकर उन्होंने गाय को परेशान किया इसलिए दोनों बेटों को सजा दी गई कि वह अब गाय का बाड़ा संभालेंगे।
कहानी की सीख- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति फल की इच्छा किए बिना ईमानदारी से अपना काम करता है सफलता उसे ही मिलती है।