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Parama Ekadashi Vrat katha : पुण्‍य फल देती है परमा एकादशी के व्रत की कथा, सुनने मात्र से दूर होते हैं कष्‍ट

Updated Oct 13, 2020 | 06:06 IST

Param Ekadashi Vrat Katha : परम एकादशी व्रत मंगलवार, 13 अक्टूबर को है और इस दिन यदि कोई व्रत कथा सुन भर लें तो उसके आर्थिक संकट दूर हो जाते हैं, क्योंकि अधिकमास में इस व्रत का फल दोगुना प्राप्त होता है।

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Param Ekadashi Vrat katha,परम एकादशी व्रत कथा
मुख्य बातें
  • एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है
  • परम एकादशी पर पूजा और व्रत के बाद कथा जरूर सुने
  • परम एकादशी कथा श्रवण से आर्थिक संकट दूर होता है

परम एकादशी व्रत अधिकमास में पड़ रहा है और इससे इस व्रत का महत्व और पुण्य लाभ दोगुना हो जाता है। व्रत पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है। पुराणों में उल्लेख है कि इस व्रत को करने और इसकी कथा का वाचन करने से धन से जुड़े हर संकट दूर हो जाते हैं। यदि कोई व्रत किसी कारणवश नहीं कर पाता तो केवल कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य की दरिद्रता दूर हो जाती है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है और परम एकादशी के व्रत करने से मनुष्य को भगवान विष्णु को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी वैष्णवों यानी भगवान विष्णु या उनके अवतारों को अपना स्वामी मानने वालों को परम एकादशी व्रत जरूर करना चाहिए। एकादशी व्रत रखकर इसकी व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। तो आइए जानें परम एकादशी की पौराणिक कथा क्या है।

परम एकादशी व्रत मुहूर्त (Parama Ekadashi 2020 Shubh Muhurat)

आश्विन परमा एकादशी मंगलवार, अक्टूबर 13, 2020 को

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 12, 2020 को 04 बजकर 38 मिनट पर

एकादशी तिथि समाप्त – अक्टूबर 13, 2020 को 02 बजकर 35 मिनट तक व्रत विधि

जानें परमा एकादशी व्रत पूजा विधि (Parama Ekadashi Vrat Puja Vidhi)

सुबह स्नान कर सर्वप्रथम सूर्यदेव को अर्घ्य दें और इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करें। धूप-दीप और नैवेद्य के साथ भगवान को भोग लगाएं और इसके बाद  ब्राह्मण को फलाहार कराएं और दक्षिणा दे कर विदा करें। इसके बाद परमा एकादशी व्रत कथा सुनें। एकादशी व्रत द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में खोलें और दिन के समय एक बार ही भोजन करें। इस दिन धर्मिक पुस्तक, अनाज, फल, मिठाई दान करना बहुत ही पुण्य कर्म माना गया है। यदि आप व्रत न भी कर सकें तो आपको दान-पुण्य जरूर करना चाहिए।

परम एकादशी व्रत कथा

प्राचीनकाल में एक सुमेधा नामक ब्राह्मण और उनकी पत्नी पवित्रा रहते थे। पवित्रा परम सती और साध्वी प्रवृत्ति की थीं। दंपति बेहद गरीब थे, लेकिन बहुत ही धार्मिक भी। गरीबी से दुखी होकर एक दिन सुमेधा ने परदेश जाने का विचार अपनी पत्नी को बताया तब वह बोली की ‘’स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंता ना करें।’’ ऐसे ही दिन गुजरते रहें और एक दिन उनके घर महर्षि कौडिन्य पधारे। ब्राह्मण दंपति ने बेहद प्रसन्न मन से उनकी सेवा की। महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हें परमा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि तुम दंपति मिलकर अधिकमास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करों और रात्रि जागरण कर प्रभु का नाम लो। इसी एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बने और हरिशचंद्र राजा हुए।’’

इसके बाद सुमेधा ने पत्नी सहित परमा एकादशी का व्रत किया और एक दिन सुबह कहीं से अचानक ही एक राजकुमार वहां आया और सुमेधा को धन, अन्न और सर्व साधन से संपन्न कर दिया। इस व्रत को करने से ब्राह्मण दंपति के दुर्दिन दूर हो गए।

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