- पितरों का तर्पण करते समय हाथ में कुश घास से बनी अंगूठी पहन लें
- दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों को जल अर्पित करना चाहिए
- श्राद्ध के बाद हलवा और खीर का प्रसाद ब्राह्मण को खिलाना चाहिए
पितृपक्ष की शुरुआत 2 सितंबर से हो गई है। पूर्णिमा के दिन श्राद्ध के बाद प्रतिपदा और उसके बाद द्वितीया का श्राद्ध होता है। पितरों की मृत्यु की तिथि के अनुसार ही पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और वह अपने वंशजों को अपना आशीर्वाद देते हैं। हिंदू धर्म में देवपूजा के साथ ही पितृपूजा का भी विशेष महत्व माना गया है। यदि पितृ नाराज होते हैं या उनका श्राद्ध नहीं किया जाता है तो वह अपने वंशजों से दुखी हो जाते हैं।
उनके दुख या गुस्से से उनके परिजनों को विशेष कष्ट की प्राप्ति होती है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य से पहले जिस तरह से देव पूजा की जाती है वैसे ही पितरों को भी पूजा जाता है। ताकि देव और पितृ दोनों का ही आशीर्वाद परिवार पर बना रहे। पितृ पूजा के लिए ही पितृपक्ष हाता है और इसमें पुरखों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए। इससे पितरों आत्मा की शांति मिलती है।
ऐसे करें पितरों का तर्पण
पितरों का तर्पण करते समय हाथ में कुश घास से बनी अंगूठी पहन लें और इसके बाद तांबे के लोटे में जल लें और इसमें काला तिल और जौ मिला दें। एक पुष्प डाल कर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को स्मरण करते मंत्र पढ़ते हुए जल दें।
इस मंत्र का जाप कर पितरों जल दें
ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:।
आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।
या
ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।
वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।
कैसे करें श्राद्ध?
इसे किसी सुयोग्य कर्मकांडी या खुद भी कर सकते हैं। श्राद्ध के लिए सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला लें। अब दक्षिण की ओर मुख कर शुद्ध सफेद कपड़े पर सारी सामग्री रख दें। अब एक माला पितृमंत्र का जाप करें। इसके बाद सुख-शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की प्रार्थना कर क्षमा याचना भी करें। इसे बाद जल अर्पित करें।
शेष सामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें। इसके बाद श्राद्ध भोज ब्राह्मण या निर्धन को खिलाने के साथ ही गायों, चींटी और कौवे को हलवा, खीर का प्रसाद खिलाएं।
ऐसे किया जाता है पिंड दान
श्राद्ध में पिंडदान भी किया जाता है और इसे बनाने के लिए पके चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर पिंडें का रूप दें। ये पिंडे पितृरूप होते हैं। अब जल में काले तिल, जौ, मिलाकर सफेद फूल के साथ तर्पण दें। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराएं।