- रोहणी व्रत करने से मन और आत्मा शुद्ध होती है
- इस व्रत के पालन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है
- जैन समुदाय में ये व्रत सबसे महत्वपूर्ण माना गया है
27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन ही रोहणी व्रत रखा जाता है। यही कारण है कि इस व्रत का नाम ही रोहणी रखा गया है। यह व्रत जैन समुदाय के लिए बहुत ही खास महत्व रखता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से आत्मा के विकारों को दूर किया जाता है। साथ ही ये कर्म बंध से भी छुटकारा दिलाता है, यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है और जैन समुदाय में सभी इस व्रत को जरूर करते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य के अंदर शुद्धता आती है और नेक कार्य करने को प्रेरित होता है। 2021 में पहला रोहणी व्रत 24 जनवरी, रविवार को आएगा।
Masik Rohni Vrat Dates in 2021
Sunday 24 January Rohini Vrat
Saturday 20 February Rohini Vrat
Saturday 20 March Rohini Vrat
Friday 16 April Rohini Vrat
Thursday 13 May Rohini Vrat
Thursday 10 June Rohini Vrat
Wednesday 07 July Rohini Vrat
Tuesday 03 August Rohini Vrat
Tuesday 31 August Rohini Vrat
Monday 27 September Rohini Vrat
Sunday 24 October Rohini Vrat
Saturday 20 November Rohini Vrat
Saturday 18 December Rohini Vrat
रोहिणी व्रत की संपूर्ण कथा (Rohini Vrat Katha in Hindi)
प्राचीन समय में चंपापुरी नगर में राजा माधवा और रानी लक्ष्मीपति रहते थे। उनके उनके 7 पुत्र और एक पुत्री रोहिणी थी। जब राहणी बड़ी हुई तो राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो उन्होंने बताया कि आपकी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। यह सुनकर राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें राजकुमार अशोक भी आए और रोहणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और दोनों का विवाह हो गया।
एक दिन हस्तिनापुर में चारण मुनिराज पधारे थे तब राजा अपने प्रियजनों के साथ उनके दर्शन के लिए गए और उनके धर्म उपदेश सुने। इसके पश्चात राजा ने मुनिराज से पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्यों है? तब गुरुवर ने कहा कि इसी नगर में वस्तुपाल नाम का राजा हुआ करता था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की एक कन्या हुई जिसके शरीर से हमेशा ही दुर्गंध आती रहती थी और यह सोच कर वह चिंतित होता था कि उसकी कन्या से कौन विवाह करेगा। धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया, लेकिन अत्यंत दुर्गंध के कारण वह दुर्गंधा को छोड़ कर चला गया। उसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए तो धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ वंदना करने गया और मुनिराज से पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीड़ा के लिए चले, सो मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए आहार व्यवस्था करने को कहा। राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई, परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार दिया जिससे मुनिराज को अत्यंत वेदना हुई और तत्काल उन्होंने प्राण त्याग दिए।
जब राजा को पता चला कि उनकी रानी के कारण ऐसा हुआ है तो उन्होंने अपनी रानी को नगर से निकाल दिया और रानी को किए पाप के कारण शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया। अत्यधिक वेदना व दु:ख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। वहां अनंत दु:खों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्पन्न और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्या हुई। तब धनमित्र ने पूछा स्वामी मुझे इससे मुक्ति का उपाय बताएं। तब स्वामी ने कहा कि यदि परिवार के सभी सदस्य रोहिणी व्रत पालन करें तो इससे मुक्ति मिल सकती है। यह व्रत पांच साल और पांच मास लगातार हर महीने करना होगा। इसके बाद सभी ने ऐसा ही किया और दुर्गंधा के शरीर से बदबू आना बंद हो गई।
दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संन्यास सहित मरण कर प्रथम स्वर्ग में देवी हुई। वहां से आकर तेरी परमप्रिया रानी हुई।