- देवताओं के निमित्त इस दिन दीप दान भी जरूर करना चाहिए
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर सूर्य को जल अर्पित करें
- इस दिन तुलसी पूजा और दीपक जलाकर तुलसी के स्तोत्र का पाठ करें
कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान करने के साथ दान-पुण्य का विधान होता है। इस दिन चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है. इस चंद्र उपच्छाया ग्रहण होगा लेकिन उपछाया के कारण सूतक नहीं लगेगा।
मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य और स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं। साथ ही देवताओं के निमित्त इस दिन दीप दान भी जरूर करना चाहिए। इस दिन दीप दान करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाले परेशानियां दूर होती है। दीप दान करने से देवताओं का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
इस विधि से करें कार्तिक पूर्णिमा पूजा
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करें। संभव हो तो स्नान गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदियों में करें। सूर्य को जल देने के लिए तांबे के लोटे में जल ले कर उसमें लाल फूल, गुड़ और चावल मिला लें।
इस दिन घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से सजाएं और शाम को सरसों का तेल, काले तिल और काले वस्त्र किसी गरीब या जरुरतमंद को अवश्य दान करें। इस दिन तुलसी पूजा और दीपक जला कर तुलसी के स्तोत्र का पाठ करें।
इसके बाद 1, 3, 5, 7 या 11 बार परिक्रमा जरूर करें। इसके बाद भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु के पूजा करें और व्रत पालन कर रहे हो तो नमक का त्याग करें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजन होने के बाद अंत में चन्द्रमा की छः कृतिकाओं का पूजन करना भी लाभदायी होता हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन से ही चातुर्मास की समाप्ति होती है। इस दिन किया गया दान-पुण्य और पूजा से अमोघ पुण्य की प्राप्ति होती है। मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा
त्रिपुरासुर राक्षस ने कठोर तप कर अपनी शक्तियां इतनी बढ़ा लीं कि सभी प्राणियों और देवताओं के लिए वह खतरा बन गया। सभी को डर था कि तप पूर्ण होने पर वह ऐसा वरदान मांगेगा जिससे सभी पर खतरा आ जाएगा। तब देवताओं ने त्रिपुरासुर के तप को भंग करने की युक्ति बनाई।
तपस्या भंग करने के लिए देवगणों ने स्वर्ग की अप्सराओं का सहारा लिया लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाईं। इस बीच त्रिपुरासुर की तपस्या पूर्ण हो गई और ब्रह्मा जी से उसने वरदान मांग लिया कि उसे मनुष्य या कोई भी देवता न मार सकें। ब्रह्मा जी को तथास्तु कहना ही पड़ा। वरदान मिलने के बाद त्रिपुरासुर का अत्याचार बढ़ गया।
डर कर सभी भगवान शिवजी के पास पहुंचे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की। इधर त्रिपुरासुर भी अंहकारवश कैलाश की ओर बढ़ चला। वहां पहुंच कर भगवान शिव से युद्ध किया। ये युद्ध सालों चला। अंत में भगवान शिव ने युद्ध में त्रिपुरासुर को हरा संसार को उस पापी के भय से मुक्त किया।