- साईं ने हर मनुष्य को अपने अंदर 5 खूबियां विकसित करने की सीख दी है
- जिस मनुष्य के अंदर धैर्य और संतुष्टि होती है, वह जीवन में आगे बढ़ता है
- दया और प्रेम इंसान को ईश्वरी कृपा का पात्र बनाती है
साईं ने अपना पूरा जीवन फकीरों की तरह गुजारा। अपने कर्मों और चमत्कार से उन्होंने हमेशा ही लोगों की मदद की और उनके साथ हर विपदा में खड़े रहे। साईं ने कभी किसी को ये नहीं कहा कि वे उनकी पूजा करें, बल्कि वह अपने भक्तों से केवल प्रेम की मांग करते थे। उन्होंने मनुष्य को हमेशा यही सीख दी की प्रेम और दया रखने वाले पर ईश्वरीय कृपा अपने आप होती है। कुछ ऐसी ही बातें उन्होंने अपने भक्तों को हमेशा सिखाई हैं। यदि उनकी पांच बातों को ही केवल मनुष्य मान लें तो उसके दुर्दिन दूर हो सकते हैं।
साईं के इन पांच बातों में जीवन की खुशहाली का राज (Sai Baba Teachings for happiness)
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साईं ने एक इंसान को कैसा होना चाहिए, इसके बारे में बताया है। उनका कहना था कि हम जब घर बनाते हैं तो उसकी नींव को सबसे ज्यादा मजबूत और ठोस बनाते हैं, ताकि घर सालों-साल तक टिका रहे और उस पर किसी प्राकृतिक आपदा का असर न हो। ठीक यही नियम इंसान पर भी लागू होने चाहिए। एक इंसान की परवरिश इस तरह से मजबूत और ठोस हो की वह किसी के बहकावे या दिखावे में आकर प्रभावित न हो। बल्कि अपने सिद्धांतों और उसूलों पर हमेशा टिका रहे। ऐसे इंसान पूजनीय बनते हैं।
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साईं इंसान को कमल की तरह बनने की सीख देते थे। उनका कहना था कि कमल सूर्य की किरण पड़ने के साथ खिलने लगता है और उसकी पंखुड़ियां फैल जाती हैं। एक इंसान को भी जहां ज्ञान और सीख मिले वहां कमल की तरह बन जाना चाहिए। ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी के आगे भी हाथ फैला देना चाहिए, क्योंकि ज्ञान से जीवन में एक नहीं अनेक रास्ते खुलते हैं।
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साईं ने अपने भक्तों से कहते थे कि, दुनिया में क्या नया है? कुछ भी नहीं और दुनिया में क्या पुराना है? कुछ भी नहीं। सब कुछ हमेशा है और हमेशा रहेगा, लेकिन यदि धैर्य और संतोष न हो तो मनुष्य के लिए हर दिन परेशान करने वाला हो सकता है। इसलिए संतुष्टि को अपने जीवन में सर्वप्रथम विकसित करना चाहिए।
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साईं अपने भक्तों को अपने अनुभवों से सीखने के लिए कहते थे। साथ ही वह यह भी कहते थे कि दूसरे के अनुभव को हमेशा मानना चाहिए। क्योंकि अनुभव भी एक ज्ञान है और अनुभव के आधार पर ही अध्यात्म की राह खुलती है। मनुष्य अनुभव के माध्यम से सीखता है और आध्यात्मिक पथ विभिन्न प्रकार के अनुभवों से भरा है।
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साईं का कहना था कि सभी कार्य विचारों के परिणाम होते हैं। यदि कोई बुरा कर्म करता है तो ये उसके विचार ही का फल होता है और कोई अच्छा कर्म करता है तो वह भी उसके विचार का ही परिणाम होता है। इसलिए विचार मायने रखते हैं और इसे शुद्ध और सही रखना चाहिए।
साईं के ये विचार मनुष्य को जीवन में प्रगति की राह पर ले जाने वाले हैं। इसलिए इन पांच मूल मंत्र को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।