- संतोषी माता का व्रत कम से कम 16 शुक्रवार करना चाहिए
- व्रत का उ्दयापन कर कम से कम 8 बालकों को भोजन खिलाएं
- संतोषी माता के व्रत में खट्टी चीजों का स्पर्श भी मना होता है
माता संतोषी का व्रत कई मायनों में कठिन माना जाता है। माता संतोषी का व्रत करने के साथ उसके नियम का पालन करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। व्रत में यदि नियम का खंडन होता है तो व्रत भी खंडित हो जाता है। इस व्रत में कुछ खास नियम बनाए गए हैं। व्रत कितनों दिनों तक करना चाहिए, क्या खाना चाहिए और क्या नहीं और किन चीजों को व्रत में छूना भी बना है। तो आइए आपको इस व्रत से जुड़ी संपूर्ण जानकारी दें।
ऐसे करें माता संतोषी का व्रत (santoshi maa ke vrat ki vidhi)
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लें और माता संतोषी को आसन दे कर चौकी पर स्थापित कर दें। इसके बाद किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर रख ले और साथ ही एक और बड़े पात्र में गुड़ और चने रख लें। इसके बाद देवी की पूजा विधि-विधान से करें। पूजा के बाद आरती करें और वहीं बैठकर संतोषी मां की व्रत कथा का वाचन कर लें। पूजा समाप्त होने पर सभी को गुड़-चने का प्रसाद बांटें। इसके बाद पात्र में भरे जल को घर में जगह-जगह छिड़क दें तथा शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें। याद रखें संतोषी माता का व्रत कम से कम 16 शुक्रवार बिना नागा करना चाहिए। अंतिम शुक्रवार को व्रत का विसर्जन करें। विसर्जन के दिन उपरोक्त विधि से संतोषी माता की पूजा कर 8 बालकों को खीर-पुरी का भोजन कराएँ तथा दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें और अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें।
संतोषी माता की पूजा में न करें ये काम (santoshi maa puja vidhi)
संतोषी माता के व्रत के दिन खट्टी चीज का स्पर्श करना भी मना होता है। घर में इस दिन कोई खट्टी चीज न छूएं न खाएं। यदि खट्टी चीजें व्रत में छू जाएं तो व्रत खंडित हो जाता है। इतना ही नहीं उद्यापन के दिन बालकों को भोजन खिलाने से पहले सचेत कर देना चाहिए कि वे खट्टी चीजों का स्पर्श भी न करें।
शुक्रवार की व्रत कथा (santoshi mata vrat katha)
प्राचीन काल में एक बुढ़िया और उसका पुत्र रहते थे। बुढ़िया अपने बेटे की पत्नी यानी अपनी बहू से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी नहीं कह पाता। बहू दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता।
एक दिन लड़का मां से बोला- 'मां, मैं परदेस जा रहा हूं।' इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा हूं। अपनी कुछ निशानी दे दो।' बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई। उधर, बेटे के जाने बाद सास के अत्याचार और बढ़ गया। इससे दु:खी हो बहू मंदिर चली गई। वहां उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।
स्त्रियों ने बताया कि शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना। व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- 'संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है।' अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- 'हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी।'
अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी। पर सेठ ने इंकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए। अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की। पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।
उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे। तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया। संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौ माह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।
संतोषी माता व्रत करने से स्त्री-पुरुषों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। परीक्षा में सफलता, न्यायालय में विजय, व्यवसाय में लाभ और घर में सुख-समृद्धि का पुण्यफल प्राप्त होता है। अविवाहित लड़कियों को सुयोग्य वर शीघ्र मिलता है।