- पितृपक्ष में सारे ही श्राद्धकर्म के दौरान कुश जरूर पहनें
- तर्पण करते हुए भी कुश को बीच की उंगली में पहनना चाहिए
- पुराणों में कुश को पवित्र घास का दर्जा दिया गया है
पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान कुश की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में धारण करने का विधान है। इसे पवित्रि के नाम से भी जाना जाजता है। मान्यता है कि यदि पितृ पक्ष में कुश न पहना जाए तो वह पूजा पूर्ण नहीं होती है। वैसे कुश का प्रयोग हर पूजा में जरूरी माना गया है। श्राद्ध ही नहीं सामान्य पूजा-पाठ में भी कुश का होना जरूरी होता है।
पुराणों में कुश को बहुत ही पवित्र माना गया है। यह एक प्रकार की घास होती है, लेकिन इसे पूजा-पाठ में प्रयोग किया जाता है। कुश को कई स्थान पर दर्भ या डाभ के नाम से भी जाना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से ही कुश बनी थी।
पितृपक्ष में यदि आप पिंडदान कर रहे या तर्पण दे रहे तो आपको कुश जरूर धारण कर लेना चाहिए। श्राद्धकर्म से केवल पितरों की आत्माओं को ही शांति नहीं मिलती बल्कि इससे श्राद्धकर्ता के घर में हमेशा शांति और सुख-समृद्धि का वास भी होता है। पितरों को देव तुल्य माना गया है। इसलिए पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त दान, तर्पण, श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक जरूर करना चाहिए।
तीसरी उंगली में पहने कुश
कुशा को तीसरी उंगली में पहनना चाहिए। इसके उपयोग से शरीर तन और मन से पवित्र हो जाता है और जब वह पूजन क्रिया करता है तो उसका पुण्यलाभ जरूर मिलता है। पूजा-पाठ के लिए जगह पवित्र करने के लिए कुश से ही जल छिड़का जाता है। कुश का प्रयोग ग्रहणकाल में भी किया जाता है। ग्रहण के समय खाने-पीने की चीजों पर ग्रहण का असर न हो इसके लिए उसमें कुश को डाल दिया जाता है।
जानें कुश का धार्मिक महत्व
अथर्ववेद में कुश को अशुभता और नकारात्मकता को दूर करने वाला बताया गया है। यह एक पवित्र घास है, जिसका प्रयोग पूजा और स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। मत्स्य पुराण में वर्णित है कि कुश घास से ही भगवान विष्णु का शरीर बना था और यही वजह है कि वह बहुत शुभदायक है। मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया था। उसके बाद उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तो उनके शरीर से बाल धरती पर गिरे और कुश के रूप में बदल गए। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए थे तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुश पर रख दिया था और इस कारण वह पवित्र हो गई।
पुराणों में वर्णित है कि जब किसी पर राहु की महादशा चल रही हो तो उसे कुश वाली पानी से स्नान करना चाहिए। इससे राहु के अशुभ प्रभाव से बचाव होता है। ऋग्वेद में भी वर्णित है कि प्राचीन समय में अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश का प्रयोग जरूर होता था।
आध्यात्मिक महत्व
कुश शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। बीच की उंगली यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली होती है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। इसलिए कुश धारण करने से वह सारी ऊर्जा शरीर में ही रहती है।