- मकर संक्रांति जैसे अहम त्यौहार पर है दान देने का विधान
- आचार्य चाणक्य ने भी दान को लेकर कही हैं बात
- जानिए चाणक्य नीति के अनुसार दान करने और दानवीर व्यक्ति के गुण
आज मकर संक्रांति का पावन पर्व पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति एक ऐसा खास पर्व है जिस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा तो होती ही है लेकिन साथ ही कुछ अन्य कर्म भी करने का विधान है। दान भी इसमें से एक है जिसे पवित्र कर्म बताया गया है और मकर संक्रांति जैसे खास मौकों पर शास्त्र देने की भावना रखने का सुझाव देते हैं। प्राचीन भारत के शीर्ष विद्वानों में से एक आचार्य चाणक्य ने भी दान करने के बारे में अपने विचार दिए हैं।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान ऐसा माध्यम के रूप में काम कर सकता है जो व्यक्ति के ना सिर्फ अहंकार का नाश करता है बल्कि प्रेम, दया, संतोष और समावेशी होने के गुणों को इंसान के अंदर विकसित करता है। साथ ही जरूरतमंदों की मदद करते हुए दान करने से समाज में भी इंसान को सम्मान की प्राप्ति होती है। आइए एक नजर डालते हैं दान के बारे में आचार्य चाणक्य की ओर से लिखी गई बातों पर।
दान करने से देवता प्रसन्न होते हैं:
आचार्य चाणक्य के अनुसार दान करने से व्यक्ति की अंर्तआत्मा को संतुष्टि के भाव का अहसास होता है। दान करने वाला व्यक्ति आम तौर पर बुराइयों से दूर ही रहता है और सदा खुद को श्रेष्ठ कार्यों में लगाकर रखता है, इसलिए दान करने वाले लोगों को समाज में सम्मान भी प्राप्त होता है। दानवीर से देवता भी प्रसन्न रहते हैं और जरूरतमंदरों की मदद करने वालों की ईश्वर भी सदा मदद करता है।
अहम् भाव का होता है नाश:
चाणक्य नीति के अनुसार दान अहंकार से मुक्ति का माध्यम भी बनता है और दान का पूर्ण लाभ तभी मिलता है जब व्यक्ति अहंकार से दूर हो। दान से संवेदनशीलता में वृद्धि होती है जबकि अहंकारी व्यक्ति दान-पुण्य के काम से दूर ही रहता है।
दिखावे के लिए जो ऐसा करता भी है तो उसे दान का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता। इसलिए दान पूरे मन और श्रद्धा से करना चाहिए, तभी इसका लाभ है और साथ ही दान देने वाले व्यक्ति को इसके बाद कुछ पाने की अपेक्षा का भी त्याग कर देना चाहिए।