- सोमवती अमावस्या की कथा को पुण्य देने वाली और मनोकामना पूरी करने वाली माना गया है
- सोमवती अमावस्या की कथा बेहद पुरानी है और आज भी उतना ही महत्व रखती है
- सोमवती अमावस्या पर कई लोग व्रत भी रखते हैं। इसे दान के लिए भी उत्तम माना गया है
सोमवार की अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। इस साल यानी 2020 में सोमवती अमावस्या और हरियाली अमावस्या एक साथ हैं। ये अद्भुत संयोग करीब 20 साल के बाद आया है। इस दिन श्रद्धालु शिव पूजन के साथ दान भी करें। सोमवती अमावस्या पर किया दान बेहद शुभ फल देता है। इस दान को किसी ब्राह्मण को ही देना चाहिए।
सोमवती अमावस्या व्रत
सोमवती अमावस्या पर हरियाली अमावस्या के साथ ही सावन का तीसरा सोमवार भी है। कई शिव भक्तों ने इस दिन व्रत रखा है। इस दिन शिवलिंग पूजन कई तरह फायदेमंद रहता है। व्रत रखने वाले और व्रत न रखने वाले भी इस दिन सोमवती अमावस्या की कथा जरूर सुनें।
सोमवती अमावस्या कथा
एक गरीब ब्राह्मण की कन्या बहुत सुशील थी लेकिन धन न होने के चलते उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। ब्राह्मण ने एक साधु से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबी महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो कि बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, तो कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही।
कन्या सुबह ही उसके घर का सारा काम करके वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि मां जी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम निपटा देती हैं। इस पर धोबिन ने नजर रखी तो देखा कि एक एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई।
सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। लेकिन जैसे सोना धोबिन ने अपनी मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसका पति गुजर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।
संयोगवश उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पुए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति को जीवन दान मिल गया।
फल देगी पीपल की परिक्रमा
सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ को भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करना भी अखंड सौभाग्य देता है।