- सिख धर्म में नए साल के रूप में मनाया जाता है बैसाखी
- इस दिन सूर्य मेष राशि में करता है प्रवेश
- इस दिन 10वें गुरु गोविंद साहब ने किया था खालसा पंथ की स्थापना
बैसाखी सिख धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस पर्व को खासतौर पर पंजाब में मनाया जाता है। यह अप्रैल में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध हिंदू त्योहारों में से एक है। वैसे तो पूरे भारत में बैसाखी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में इस पर्व को लेकर एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। इस दौरान खेतों में रबी की फसल पककर लहलहाती हैं, किसानों के मन में फसलों को देखकर खुशी मिलती औऱ वह अपनी खुशी का इजहार बैसाखी के पर्व को मनाकर करते हैं।
इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन सिख धर्म के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही यह त्योहार सिख धर्म के लिए कुछ ऐतिहासिक मूल भी रखता है। यह पर्व हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार विक्रम समवत् के प्रथम माह में पड़ता है, इस साल यह पावन पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। ऐसे में आइए जानते हैं बैसाखी को लेकर सिख धर्म मे क्या है खास मान्यता।
Baisakhi Significance : बैसाखी मनाने की मान्यता
सिख धर्म के अनुसार बैसाखी मनाने को लेकर कई ऐतिहासिक कहानियां मौजूद हैं। इस दिन सिख धर्म के अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना के लिए सिखों को संगठित किया था। वहीं ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि बैसाखी का उत्सव सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी के शहादत के साथ शुरू हुआ था।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस समय मुगलिया सल्तनत धर्म परिवर्तन औऱ अत्याचार की इबादत लिख रहा था, उस समय हिंदु धर्म औऱ उसके लोगों की सलामती के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाया। इसके बाद औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए प्रताड़ित किया, लेकिन वह इसमें नाकामयाब रहा। गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीष कटवा दिया लेकिन इस्लाम कुबुल नहीं किया। इस पर्व को लेकर यह भी खास मान्यता है।
How we celebrate Baisakhi : ऐसे मनाया जाता है बैसाखी का पर्व
आपको बता दें बैसाखी की तैयारी भी सनातन हिंदु धर्म के महापर्व दीपीवली की तरह कई दिन पहले से की जाती है। बैसाखी से पहले लोग घर की साफ सफाई करते हैं, तथा इस दिन तरह तरह के पकवान बनाते हैं। घरों को लाइटिंग औऱ रंगोली से सजाते हैं। बैसाखी के पावन अवसर पर सभी सिख धर्म के लोग सुबह स्नान कर गुरुद्वारा जाते हैं। गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ और कीर्तन होता है। हालांकि एक बार फिर कोरोना के भयावह प्रकोप के कारण सभी समारोह प्रभावित हुए हैं। ऐसे में बैसाखी की धूम गुरुद्वारे में देखने को नहीं मिलेगी।