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Swastik Sign: मांगलिक कार्यों से पहले क्यों बनाया जाना जाता है स्वास्तिक, इसकी चार रेखा का क्या है अर्थ

Updated Jun 13, 2022 | 18:53 IST

Importance Of Swastik In Hinduism: किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने से पहले स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि स्वास्तिक का चिन्ह बनाना शुभ होता है। इससे वास्तु दोष दूर होता है व हर काम अच्छे से पूरा होता है।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Swastik benefits
मुख्य बातें
  • स्वास्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है
  • सु और अस्ति इसमें सु का अर्थ है शुभ व अस्ति का मतलब 'होना' होता है
  • हिंदू धर्म में स्वास्तिक को गणेश का प्रतीक भी माना जाता है

Why Swastik Sign Made Before Auspicious Work: हिंदू धर्म में स्वास्तिक का बहुत महत्व है। हर शुभ कार्य में व्यक्ति सबसे पहले स्वास्तिक का चिन्ह बना कर ही कार्यप्रणाली को आगे बढ़ाता है। स्वास्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है सु और अस्ति इसमें सु का अर्थ है शुभ व अस्ति का मतलब 'होना' होता है। इस तरह स्वास्तिक का अर्थ होता है 'शुभ होना'। स्वास्तिक को प्राचीन समय से ही मांगलिक कार्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हिंदू धर्म में स्वास्तिक को गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। खास तौर पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा करते वक्त स्वास्तिक का चिन्ह जरूर बनाया जाता है। ऐसा करना शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक। क्या है इसके पीछे कारण और इसका लाभ...

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स्वास्तिक के क्या है लाभ

ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक किसी भी कार्य को करने से पहले उससे वास्तु दोष को दूर करने के लिए स्वास्तिक बनाया जाता है। ताकि जो भी कार्य हो वह लाभकारी हो। स्वास्तिक की चार रेखाएं चारों दिशा को दर्शाती है। जो हर तरफ से वास्तु दोष को दूर करता है। कुछ लोग घर के मुख्य द्वार पर भी स्वास्तिक बनाते हैं। घर की उत्तरी दिशा में सूखी हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना शुभ रहता है। ऐसी मान्यता है कि घरों व व्यापार में आने वाली अड़चन स्वास्तिक से दूर होने लगती है। इसके अलावा घर या व्यापार में सुख समृद्धि भी आती है।


इसकी चार रेखाएं का क्या है अर्थ

हिंदू धर्म के अनुसार ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य माना गया है और उसकी चारों भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। इसके अलावा स्वास्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है। अन्य ग्रंथो में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है। यह मांगलिक विलक्षण चिन्ह अनादि काल से ही संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। 

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
 

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