- सावन में पांचवें सोमवार पर पंचस्वरूप की पूजा करने के बहुत पुण्यलाभ हैं
- श्रावण पूर्णिमा के कारण इस दिन चंद्रदेव की पूजा का भी विशेष महत्व है
- शिवजी के पंचस्वरूप चार दिशा और मध्य का घोतक माने गए हैं
सावन के आखिरी सोमवार पर अद्भुत योग बन रहा है। इस दिन श्रावण पूर्णिमा भी पड़ रही है। . इस दिन चंद्रमा के मकर राशि में होने से प्रीति योग बन रहा है। इस बार सावन में पांच सोमवार होने के कारण अंतिम सोमवार के दिन पंचमुख शिव की पूजा का बहुत महत्व माना गया है। शिव के पंचमुख अवतार की पूजा के साथ उनकी कथा पढ़ने से पूरे सावन मास के पुण्यलाभ की प्राप्ति होती हैं। जिस सावन में पांच सोमवार होते हैं, उसमे शिव के इस स्वरूप की पूजा का महत्व बहुत ज्यादा हो जाता है। मान्यता है कि पंचमुख अवतार की आराधना से मनुष्य के जीवन के हर संकट दूर होते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्रावण का अंतिम सोमवार पर क्योंकि पूर्णिमा भी पड़ रही है तो इस दिन चंद्रदेव की पूजा का भी महत्व होता है। चंद्रमा को पूर्णिमा का देवता माना गया है और चंद्रमा और शिवजी का विशेष दिन में एक ही होता है। इसलिए ये पूर्णिमा और सोमवार का अद्भुत संयोग है। इसे सौम्या तिथि माना जाता है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा करने से चहुंओर सफलता प्राप्त होती है।
जानें, शिव जी के पंचमुख होने की कथा
भगवान शिव और विष्णुजी जी के बीच अनन्य प्रेम है और दोनों ही एक दूसरे को आराध्य मानते हैं । शिव तामसमूर्ति माने गए हैं और विष्णु सत्त्वमूर्ति। एक-दूसरे का ध्यान करने से शिव श्वेत वर्ण और भगवान विष्णु श्याम वर्ण हो गए । एक बार भगवान विष्णु ने अत्यन्त मनोहर किशोर का रूप धारण किया तो उसे देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनन्त, सहस्त्राक्ष इन्द्र भी आए। सभी ने भगवान के इस रूपमाधुर्य का आनन्द लिया। यह देखकर भगवान शिव के मन में भी विचार आया कि उनके भी अनेक मुख व नेत्र होते तो मैं भी भगवान विष्णु के इस किशोर रूप का दर्शन कर पाता । भगवान शिव के मन में जैसे ही ये इच्छा उत्पन्न हुई, भगवान पंचमुख हो गए। भगवान शिव के पांच मुख के नाम सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान है। उनके प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र हैं और इसके बाद से ही शिवजी को 'पंचानन' या 'पंचवक्त्र' कहा जाने लगा।
जानें, शिव के पंचमुख यानी 'पंचानन' और 'पंचवक्त्र' स्वरूप के बारे में
- भगवान शिव के पांच मुख चारों दिशाओं में हैं और उनका पांचवां मुख मध्य में है।
- बालक के समान नजर आने वाला भगवान के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात कहलाता है। यह स्वरूप बालक के समान निर्मल, शुद्ध व निर्विकार माना गया है।
- भगवान शिव का उत्तर दिशा का मुख वामदेव है और ये स्वरूप विकारों का नाश करने वाला माना गया है।
- शिवजी का दक्षिण मुख अघोर स्वरूप माना गया है। इसका अर्थ है कि निन्दित कर्म करने वाले के कर्म के भी भगवान शिव शुद्ध बना देते हैं।
- भगवान शिव के पूर्व मुख का स्वरूप तत्पुरुष है और इस स्वरूप की पूजा से मनुष्य की आत्मा अपने आप में स्थित रहती हैं।
- भगवान शिव का ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान है और इस स्वरूप का अर्थ है स्वामी।
- भगवान शंकर के पांच मुखों में ऊर्ध्व मुख ईशान दुग्ध जैसे श्वेत है और पूर्व मुख तत्पुरुष पीले रंग का। वहीं दक्षिण मुख अघोर नील वर्ण का और पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का होता है। वहीं उत्तर मुख वामदेव श्यामवर्ण का है।
भगवान शिव के पंचमुख अवतार की कथा पढ़ने और सुनने का सावन मास में बहुत माहात्म्य माना गया है। इससे मनुष्य के अंदर शिव-भक्ति जागृत होती है और सारी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।