- कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था
- देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं
- श्रीकृष्ण और राधाजी का जन्म भी अष्टमी तिथि पर ही हुआ था।
Rukmini Ashtami Vrat: पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। देवी रुक्मिणी मां लक्ष्मी का ही अवतार मानी गई हैं। देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं। द्वापर युग देवी विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीला ही थी कि उनका जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ था और देवी रुक्मिणी और राधाजी का जन्म भी अष्टमी तिथि पर ही हुआ था। यही कारण है कि हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन देवी की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख का प्रसार होता है। देवी की पूजा से संतान की प्राप्ति भी होती है। रुक्मणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मणी का पूजन करने से जीवन मंगलमय हो जाता है और जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
इस विधि से करें देवी की पूजा
रुक्मिणी अष्टमी के दिन सुबह स्नान कर व्रत और पूजन का संकल्प लें और इसके बाद एक पीढ़े पर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। साथ ही कामदेव की तस्वीर भी रखें। इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर भगवान और देवी अभिषेक करें। इसके पश्चात श्रीकृष्ण जी को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें। कामदेव को सफेद वस्त्र प्रदान करें। इसके बाद भगवान को कुमकुम और देवी को सिंदूर अर्पित करें और इसके बाद सभी को हल्दी, इत्र और फूल चढ़ाएं। इसके बाद कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। अंत में तुलसी मिश्रित खीर का भोग लगा कर गाय के घी का दीपक जलाएं और कर्पूर की आरती करें। शाम के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार ग्रहण करें। इस दिन रात्रि जागरण करें। अगले दिन नवमी को ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात स्वयं पारण करें।
भगवान श्रीकृष्ण को मान लिया था पति
देवी के पिता नरेश भीष्मक अपने बेटी रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं और मन ही मन उन्हें ही अपना पति मान चुकी थीं। की भक्त थी, वे मन ही मन भगवान श्री कृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थी। जिस दिन शिशुपाल से उनका विवाह होने वाला था उस दिन देवी रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ मंदिर गई और पूजा करके जब मंदिर से बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उनको अपने रथ में बिठा लिया और द्वारिका जाकर देवी के साथ विवाह कर लिया। भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कामदेव है और अष्टमी के दिन इनकी पूजा भी जरूर करनी चाहिए।