- कीर्तन करना मन और तन को शुद्ध करता है
- भजन-कीर्तन करने से तनाव दूर होता है
- भजन-कीर्तन करना ईश्वर के करीब लाता है
श्री चैतन्य चरितामृत में उल्लेख है कि भगवान ने खुद ये कहा है कि वे पांच कामों से बेहद खुश होते हैं। साधु-संग , नाम- कीर्तन , भगवत्-श्रवण , तीर्थ वास और श्रद्धा के साथ श्रीमूर्ति सेवा को भगवान बेहद पसंद करते हैं। कीर्तन करने से केवल मन ही नहीं तन भी शुद्ध होता है।
जब भी भक्त तन्मयता से भजन-कीर्तन करते हैं उनके मन में किसी भी तरह का राग-द्वेश नहीं रहता। कीर्तन करने से केवल भगवान की भक्ति ही नहीं होती बल्कि इससे मन की अशुद्धियां और दुगुर्ण भी दूर होते हैं। यही कारण है कि भजन-कीर्तन करने वालों के मन शांत होता है और जब वे किसी भी कार्य को करते हैं तो पूरी तन्मयता के साथ करते हैं।
कीर्तन के होते हैं कई प्रकार
पुराणों में कीर्तन के कई प्रकार माने गए हैं। गुण कीर्तन, कर्म कीर्तन, स्वरूप कीर्तन, तत्व कीर्तन, भाव कीर्तन, नाम कीर्तन। इन सभी कीर्तन करने के अलग-अलग लाभ होते हैं। ठीक उसी तरह से जब भगवान के गुणों का वर्णन किया जाता है तो वह गुण कीर्तन कहलाता है। इसी तरह से जब हम भगवान की पूजा करते हैं तो वह कर्म कीर्तन कहलाता है। इस तरह भगवान की अराधना से जुड़े कोई भी कार्य हो तो वह कीर्तन ही माना जाता है।
क्यों है भजन-कीर्तन करना सबसे श्रेष्ठ
भजन-कीर्तन करना सबसे श्रेष्ठ इसलिए माना गया है, क्योंकि जब भी भक्त इसमें तन्मयता से रमते हैं तो इनके मन के भाव निश्छलता से भर जाता है और मन के नकरात्मक भाव दूर होते जाते हैं। कीर्तन करना ह्रदय में प्रेम-भावना और सह्रदयता को बढ़ता है। कीर्तन करने से वाणी में मधुरता आती है।
तनाव रहित बनाता कीर्तन
कीर्तन सुर और राग से जब गाया जाता है तो ये मन के तनाव और चिंता को दूर कर देता है। मन के भाव गीत-संगीत के साथ घुल जाते हैं। भगवान को याद करते हुए जब कीर्तन किया जाता है तो वह मन के साथ मस्तिष्क में भी सकारात्मक ऊर्जा को भरता है।
औषधिय होता है कीर्तन
कीर्तन करना औषधिय तरीके से शरीर पर काम करता है। ये शरीर के कई रोगों को दूर करता है और शरीर को आत्मबल और शक्ति देता है। कीर्तन कोई बौद्धिक योग नहीं है लेकिन इसकी तरंगे जब मन के गहराई में उतरती हैं तो ये शरीर में रोग को दूर करने का काम करता है।