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Chhath Puja in Lolark Kund: छठ पर बनारस के लोलार्क कुंड में होती है खास सूर्य पूजा, खुद उन्‍होंने चुनी थी जगह

मेधा चावला | SENIOR ASSOCIATE EDITOR
Updated Oct 31, 2019 | 15:48 IST

छठ (Chhath) का महापर्व शुरू होने जा रहा है, लेकिन इससे पूर्व आपको सूर्यदेव (Surya Dev) की एक कथा जरूर जाननी चाहिए। भगवान सूर्य काशी (Kashi) को उजाड़ने आए थे, लेकिन वहां की धार्मिकता को देख वह वहीं बस गए।

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तस्वीर साभार:&nbspGetty Images
Mythological Story of Surya Dev residing in Kashi

छठ पूजा 2 नवंबर से शुरू हो रही है। चार दिन के इस त्यौहार में सूर्य और छठी मैया की पूजा होती है। छठ पूजा में उगते और अस्गामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और पूरे चार दिन तक एक तपस्वी की तरह जीवन व्रती जन और उनके परिजन जीते हैं। 36 घंटे का ये निर्जला व्रत बेहद कठिन और पवित्रता का होता है। इस सब से इतर शायद ही आप ये जानते होंगे कि भगवान सूर्य एक बार काशी को उजाड़ने की मंशा लेकर यहां आए थे, लेकिन काशी की महिमा, वहां के लोगों की आस्‍था और राजा के धर्म पालन को देख कर ऐसे मोहित हुए कि वहीं बस गए। आइए जानें सूर्य देव की इस कथा के बारे में।

भगवान शिव के कहने पर गए थे काशी सूर्यदेव
शिव ने एक बार सूर्यदेव को बुलावा भेजा और कहा कि सप्तवाहन! तुम मडंग्लमयी काशी जाओ और वहां जा कर काशी को उजाड़ दो। उन्होंने बताया कि वहां का राजा दिवोदास बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का है और उसने आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे उसकी आलोचना की जा सके। भोले बाबा ने बताया कि देवोदास का अपमान न हो लेकिन काशी को उजाड़ दो। धार्मिक लोगों का अपमान खुद पड़ता है इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि तुम्हारे बुद्धिबल से राजा धर्मच्युत हो जाए तब अपनी दु:सह किरणों से तुम नगर को उजाड़ देना। इससे पहले भी कई देवता और योगी राजा के अंदर कोई कमी न निकाल सके इसलिए अब मैंने आपको ये कार्य सौंपा है। भगवान शिव ने कहा कि दिवाकर! इस संसार में जितने जीव हैं उन सबकी चेष्टाओं से आप भली भांति परिचित हैं इसलिए ही आप लोकचक्षु कहलाते हैं। अत: मेरे कार्य की सिद्धि के लिए आप ही यह कार्य कर सकते हैं। क्योंकि मैं काशी को दिवोदास से खाली कराकर वहां निवास करना चाहता हूं।

चढ़ने लगा काशी का रंग
सूर्य देव ने बहुत ही तरीके से राजा के अधर्म होने की संभावना तालशी लेकिन नाकाम रहे। कई रूप बदले, कभी-कभी उन्होंने नाना प्रकार के दुष्टान्तों और कथानकोंद्वारा अनेक प्रकार के व्रत का उपदेश करके काशीजनों को बहकाने का प्रयास किया लेकिन सब विफल रहे। इस बीच वह खुद काशीमय होते जा रहे थे। काशी के धर्ममय प्रभाव को देखकर भगवान सूर्य के अदंर काशी में वास का लालच उत्पन्न हो गया और वहां रहने के लिए उन्‍होंने असि नदी के दक्षिण में स्थान चयनित कर लिया। यह स्थान लोलार्क कुंड के नाम से प्रसिद्ध भी है। काशी को उजाड़ने की जगह वह वहां सदा के लिए बस गए और काशीवासिसयों के योग क्षेम का वहन करने लगे।

सूर्य पूजा का विशेष स्थान बन गया लोलार्क कुंड
मार्गशीष मास की षष्ठी या सप्तमी तिथि को रवि योग होने और छठ पूजा के समय यहां पर आकर भक्तजन पूजा करते हैं। मान्यता है कि लोलार्क सूर्य का दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और जिनको संतान की कामना होती है, वह भी पूरी हो जाती है। रविवार को लोलार्क सूर्य का दर्शनमात्र से इंसान के दुख और दर्द दूर हो जाते हैं।

सूर्य आह्वाहन श्लोक
धाता कृतस्थली हेतिर्वासुकी रथकृन्मुने। पुलस्तयस्तुम्बुरुरिति मधुमांस नयन्त्यमी ।।
धाता शूभस्य मे दाता भूयो भूयोअपि भूयस:। रश्मिजालसमाश्रिष्टस्तमस्तोमविनाशन: ।।

जो भगवान सूर्य चैत्र माल में धाता नाम से कृतस्थली अप्सरा, पुलस्त्य ऋषि, वासुकी सर्प, रथकृत् यक्ष, हेति राक्षस तथा तुम्बुरु गंधर्व के साथ अपने रथ पर रहते हैं, उन्हें हम बार- बार नमस्कार करते हैं। वे रश्मिजाल से आवृत होकर हमारे अंधकार को दूर करें तथा हमारा पुन: पुन: कल्याण करें। धाता सूर्य आठ हजार किरणों के साथ तपते हैं तथा उनका रक्त वर्ण है।

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