- देश के तीन मुख्य सूर्य मंदिर में शामिल है ये स्थान
- पूर्व से अचानक पश्चिम में मुख्य द्वार बदल गया था
- औरंगजेब तोड़ना चाहता था मंदिर, लोगों ने रोका था
लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो चुका है। चार दिनों चलने वाली इस महापर्व में औरंगाबाद के देव सूर्य मंदिर खास आयोजन होते हैं। देव सूर्य मंदिर के चमत्कार ऐसे हैं जिन्हें सुन कर आज भी लोग सहसा इस पर विश्वास नहीं कर पाते लेकिन पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र सत्यता को बताता है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके मुख्य द्वार पूर्व से अचानक रातों रात पश्चिम दिशा
में मुड़ गए थे। छठ पर देव सूर्य मंदिर में मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग देश भर से आते हैं। मान्यता है कि देव सूर्य मंदिर में छठ के समय पूजा करने वाले भक्तों की हर आस पूरी होती है।
द्वापर युग में विश्वकर्मा ने बनाया था मंदिर
देव सूर्य मंदिर का निर्माण द्वापर युग में विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। इस मंदिर को देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से भी जानते हैं। पुराणों में मिले उल्लेख बताते हैं कि यह मंदिर द्वापर युग के मध्यकाल में बना था और ये मंदिर देश के प्रमुख तीन सूर्य मंदिरों में से एक है। कोणार्क सूर्य मंदिर, लोलार्क सूर्य मंदिर वाराणसी के बाद इस मंदिर को ही सूर्य मंदिर के रूप में माना गया है।
मंदिर में है सूर्य देव की अद्भुत मूर्ति
मंदिर में सूर्यदेव की तीन रूपी प्रतिमां सात रथों पर सवार है। सूर्य देव की ये तीन मूर्तियां उदयाचल, मध्याचल तथा अस्ताचल स्वरूप वाली हैं। साथ ही मंदि प्रांगण में भगवान शिव -माता पार्वती की भी प्रतिमा है। ये प्रतिमिा भी बहुत ही अलग है। पहली बार माता पार्वती को भगवान शिव के जांघ पर विराजमान यहां देखा जा सकता है।
मनोकामना पूर्ण होने पर छठ में लोग चढ़ाते हैं जल
ऐसी मान्यता है कि यहां के मंदिर में जो भी मनोकामना मांगी जाती है वह पूर्ण जरूर होती है। साथ ही जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो अगले छठ पर सूर्य मंदिर में आकर जल चढ़ाया जाता है।
रातों रात बदल गई मंदिर के द्वार की दिशा
कहा जाता है कि जब औरंगजेब देव सूर्य मंदिर को तोड़ने आया था तो लोग मंदिर के बाहर एकत्र हो गए और उससे मंदिर न तोड़ने का आग्रह किया लेकिन वह नहीं माना और कहा कि यदि तुम्हारे देवता का ये मुख्य द्वार रात भर में पूर्व से पश्चिम हो जाए तो वह मंदिर नहीं तोड़ेगा। लोग कहते हैं कि अगले दिन सुबह मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ हो चुका था। इसके बाद औरंगजेब देव सूर्य मंदिर को छोड़कर चला गया।