हिंदु धर्म में काशी विश्वनाथ मंदिर का एक अहम स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन करने और गंगा में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति होती है। काशी में बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए देश भर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। गंगा किनारे बसी काशी को भगवान शिव के त्रिशुल पर टिका हुआ माना जाता है। काशी में बसने से पहले लोग भोलेनाथ और काल भैरव का दर्शन करना नहीं भूलते।
- काशी विश्ननाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। गंगा किनारे स्थित इस मंदिर कि स्थापना 1490 में हुई थी। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में बंटा हुआ है। जिसके मुताबिक ज्योतिर्लिंग का दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं तो दूसरी तरफ भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति का धाम भी कहा जाता है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर का छत्र सोने का है। हालांकि मंदिर पर पहले नीचे तक सोने लगा था लेकिन अंग्रेजों ने इस सोने को निकाल लिया था। केवल छत्र पर ही अब सोना रह गया है। ऐसी मान्यता है कि सोने के छत्र के दर्शन करने मात्र से लोगों की मान्यताएं पूरी हो जाती हैं।
- विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। यही वजह है कि ये तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान माना जाता है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
- काशी को मोक्षदायनी भी कहा जाता है जिसकी वजह से लोग अपने जिंदगी की आखिरी समय में वाराणसी आ जाते हैं। लोगों के मुताबिक यहां प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा गया है। बता दें कि औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़वा डाला था। जिसके बाद औरंगजेब ने ठीक उसके बगल में ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया था। इस दौरान लोगों ने शिव के ज्योतिर्लिंग को एक कुएं में छिपा दिया था। ये कुआँ आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच में स्थित है। बाद में इसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बाबा विश्वनाथ के इस प्राचीन मंदिर का फिर से निर्माण करवाया था।