- शिव ने इस नगरी को असुर के आतंक से किया था मुक्त
- भगवान विष्णु चार मास के बाद जाग कर यहां आते हैं
- पंचगंगा घाट से देवदीपावली की ये परंपरा शुरू हुई थी
कार्तिक का महीना हिंदू धर्म में धार्मिक महत्व और पुण्य का माना गया है। माह में दान-पुण्य, गंगा स्नान के साथ दीपदान व तुलसी विवाह करने से जन्म-जमांतर के पापों से मुक्ति मिलती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में पड़ने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। और देव दीपावली का उत्सव काशी में ही सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
जिस तरह अयोध्या में दीवाली उत्सव प्रमुख है वैसे ही काशी यानी बनारस में देव दीपावली का बहुत महत्व है। 12 नवंबर को यह त्योहार इस साल होगा और इस दिन काशी के 84 घाट दीपों से जगमगा जाएंगे।
बनारस में क्यों मनाते है देव दीपावली, जाने 6 कारण
- पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि भगवान विष्णु जब चार महीने बाद जागते हैं तो अन्य देवतागण कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन खुशी में स्वर्ग से आकर काशी में देव दीपावली मनाने आए थे। यहां दीप जला कर देव दीपावली मनाई गई थी।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु से पहले जाग गईं थी और उन्होंने काशी में दीपदान कर इस परंपरा की शुरुआत की थी।
- भगवान शिव ने काशी में आतंक मचा रहे असुर त्रिपुरासुर से काशी की जनता को मुक्त किया था और इसी खुशी में यह त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्रिपुरारी पूर्णिमा का भी नाम दिया गया है। काशी के लोगों ने भगवान शिव के लिए दीपदान कर अपना आभार जताया था।
- देव दिवाली की शुरुआत बनारस के पंचगंगा घाट पर 1915 में होने का भी जिक्र मिमलता है। यहां लोगों ने हजारों की संख्या में दीप जला कर मां गंगा और भोलेबाबा की पूजा की थी।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार यह उत्सव करीब तीन दशक पूर्व समाजसेवी नारायण गुरु ने शुरू किया था जो एक घाट से दूसरे घाट होते हुए काशी के पूरे घाटों पर दीप जलाने की परंपरा के रूम में विकसित हो गया।
- समय के साथ अब काशी में शहीदों के सम्मान में भी हर को एक दीप जलाने लगा है और ये परंपरा बन चुकी है।
देव दीपावली काशी में मनाई जाती है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य देशभर में किया जाता है।