- पंच केदार मूलरूप से भगवान शिव को है समर्पित हैं, यहां पर भोलेनाथ के विभिन्न स्वरूप की पूजा होती है
- 2500 वर्ष पुराना है केदारनाथ का इतिहास, यह भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से है एक
- दिल्ली से केदारनाथ की दूरी करीब 452 किलोमीटर है
नई दिल्ली: उत्तराखंड को देवभूमि कहां जाता है जहां स्थित केदारनाथ धाम को चार धाम में से एक माना जाता है। देवों के देव महादेव यानी भगवान शंकर को सृष्टि के रचयिता के रुप में जाना चाता है। भगवान शंकर को लेकर कई पौराणिक ग्रंथों में अनेक मान्यताएं हैं लेकिन आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे मंदिरो रूबरू करवाएंगे, जो हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर स्थित है जिन्हें पंच केदार के नाम से जाता है ।
पंच केदार के नाम,panch kedar ke naam
केदारनाथ मंदिर के अलावा यहां चार और भगवान शिव के मंदिर हैं, जिन्हें पंच केदाराथ कहा जाता है। यह मंदिर मूलरूप से भगवान शिव को समर्पित है। यहां पर भगवान शंकर के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। पंच केदार का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में स्पष्ट रूप से वर्णित है।
पंच केदार का इतिहास
इन मंदिरों का इतिहास महाभारत के समय में द्वापर युग से जुड़ा है। पंच केदार के मंदिरों को लेकर मान्यता है कि इन मंदिरों का निर्माण पांडवों ने किया था। केदार भगवान शिव का स्थानीय नाम है और पंच का अर्थ पांच है, इसलिए भगवान शिव के इन मंदिरों के समूह को पंच केदार के नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ धाम
महादेव का धाम केदारनाथ भक्तों के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। पांच नदियों के संगम पर स्थित यह प्राचीन मंदिर 2500 वर्षों के इतिहास को संजोए हुए है और बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। भगवान शिव के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पर भोलेनाथ के नाम का उच्चारण मात्र से ही आत्मा अंतर्मुक्त हो जाती है।
यह छोटा चारधाम का भी हिस्सा है और गौरीकुंड से 22 किलोमीटक का ट्रैक भगवान शिव के इस मंदिर की ओर जाता है। देवभूमि उत्तराखंड के हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ 6 माह के लिए खुलते हैं। सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी की वजह से भगवान केदारनाथ धाम का कपाट बंद कर दिया जाता है। ।
दिल्ली से केदारनाथ की दूरी करीब 452 किलोमीटर है। यहां पर पहुंचने के लिए आप दिल्ली से ऋषिकेश के लिए रेल मार्ग, हवाई मार्ग और बस मार्ग का सहारा ले सकते हैं। ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचने के लिए आप टैक्सी भी बुक कर सकते हैं। यहां से मंदिर तक आप पैदल सफर तय कर सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर
गढ़वाल की पहाड़ियों पर स्थित केदारनाथ धाम पंच केदार में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है। पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत में भी इस मंदिर को लेकर उल्लेख किया गया है। कहा जाता है कि पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था, क्योंकि भगवान शिव महाभारत के नरसंहार से काफी आहत हुए थे। यहां पर भगवान शिव के क्रोधित अवतार की पूजा बड़े श्रद्धाभाव के साथ की जाती है। भगवान शिव का यह मंदिर चंद्रशिला चोटी के नीचे 11,385 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
रुद्रनाथ मंदिर, हिमालय
रुद्रनाथ मंदिर हिमालय की गोद में स्थित पंच केदार में से एक है। यहां पर भोलेनाथ के मुख की पूजा की जाती है। नंदा देवी मंदिर और त्रिशूल चोटियां भगवान शिव के इस मंदिर को और भी अद्भुत बनाती हैं
मदमहेश्वर या मध्यमहेश्वर मंदिर
गढ़वाल हिमालय के गंडौर गांव में समुद्रतल से लगभग 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर या मध्यमहेश्वर मंदिर भगवान शिव का तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में से एक है। भगवान शिव के इस मंदिर के दर्शन के बाद भक्तगण केदारनाथ, तुंगनाथ और रुद्रनाथ की यात्रा करते हैं। यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है। कहा जाता है कि भीम ने भगवान शिव की अराधना के लिए मंदिर का निर्माण करवाया था।
कल्पेश्वर मंदिर
कल्पेश्वर मंदिर भगवान शिव के पावन धामों में से एक है। यह मंदिर गढ़वाल के उर्गम घाटी से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर पंच केदार मंदिरो में पांचवे स्थान पर है। यहां पर भगवान शिव के उलझे हुए जटाओं की पूजा की जाती है। इस मंदिर का कपाट सालभर खुला रहता है।