- रंग के साथ उत्साह, उमंग का त्योहार माना जाता है होली
- रंग बिरंगे उत्सव से पहले है होलिका दहन की परंपरा
- शास्त्रों में कुछ लकड़ियों का इस्तेमाल है वर्जित, भूलकर भी ना करें इस्तेमाल
मुंबई: रंगों के त्योहार होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन (Holika Dahan) का पर्व मनाया जाता है और इस दौरान हर गली-मुहल्ले और अब तो यहां तक कि हर सोसायटी में लोग साथ मिलकर होलिका को जलाते हैं। जिस जगह पर होलिका जलानी होती है, वहां पर काफी समय पहले से ही होलिका दहन के लिए लकड़ियां इक्ट्ठी कर ली जाती हैं।
इस बीच बहुत से लोगों को यह पता ही नहीं होता कि होलिका दहन में किस लकड़ी का इस्तेमाल (Wood) होना चाहिए और किन लकड़यों के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए इसलिए वे बिना जाने समझे हरे पेड़ और सभी तरह की लकड़ियां भी जला देते हैं, जोकि सही नहीं है और मान्यता के अनुसार इससे अशुभ को आमंत्रण मिल सकता है।
शास्त्रों के अनुसार राहु-केतु से संबंधित कुछ पेड़ बुराई के प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए होलिका दहन में इन पेड़ों की लकड़ियों को जलाना ज्यादा बेहतर माना जाता है।
- होलिका दहन में वट यानी बरगद के पेड़ की लकड़ी जलाना अशुभ माना जाता है, इसलिए इसकी लकड़ी जलाने से परहेज करना चाहिए
- होलिका दहन में आम की लकड़ी को नहीं जलाना चाहिए। ऐसा करना काफी अशुभ माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पेड़ की हरी लकड़ी को काटकर उसे होलिका दहन में उपयोग में नहीं लाना चाहिए।
- होलिका जलाने के दिन एरंड और गूलर की लकड़ी का उपयोग करना चाहिए। साथ ही इस दिन गाय के उपले भी उपयोग किए जा सकते हैं।
- एरंड और गूलर की लकड़ी की यह खासियत होती है कि इसको जलाने से हवा शुद्ध हो जाती है और मच्छर, बैक्टीरिया जैसी चीजें भी खत्म हो जाती हैं। इन दोनों लकड़ियों को गाय के उपले के साथ जलाना चाहिए।
- इस मौसम में एरंड और गूलर के पत्ते झड़ने लगते हैं ऐसे में अगर इन्हें जलाया ना जाए तो इनमें कीड़ा लगता है। इस एक वजह से भी इन्हें जलाना उचित माना गया है।