- छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है, इसलिए इसे महाव्रत भी कहते हैं
- कहा जाता है कि छठ माता सूर्य भगवान की बहन हैं
- छठ पूजा में नहाय खाय का बहुत महत्व होता है
हर साल छठ पूजा का महापर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पूरे विधि विधान से छठ माता की पूजा करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देती हैं। महिलाएं छठ पूजा का व्रत संतान प्राप्ति, संतान की सुख समृद्धि और लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह पर्व मुख्य रुप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है, इसलिए इसे महाव्रत भी कहते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की खष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि छठ माता सूर्य भगवान की बहन हैं। इसलिए माता की पूजा के बाद सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इससे संतान सुख प्राप्त होता है। आइये जानते हैं छठ पूजा कैसे शुरू होती है और नहाय खाय और खरना का क्या महत्व है।
नहाय खाय का महत्व
छठ पूजा में नहाय खाय का बहुत महत्व होता है। कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को नहाय खाय होता है। इस दिन महिलाएं नदी में स्नान करके नया वस्त्र धारण करती हैं और साधारण भोजन ग्रहण करती हैं। इसके बाद घर के सभी सदस्य भोजन करते हैं।
खरना का महत्व
यह व्रत कार्तिक शुक्ल की पंचमी को रखा जाता है। यह छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन महिलाएं प्रसाद बनाने के लिए गेहूं पिसती हैं। खरना के दिन छठ पूजा का व्रत रखने वाली महिलाएं गुड़ की खीर खाती हैं। यह बहुत शुभ होता है। गुड़ की खीर बनाकर छठ परमेश्वरी की पूजा की जाती है और प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता है। खरना के दिन नमक और चीनी का सेवन नहीं किया जाता है।
खष्ठी के दिन तैयार होता है प्रसाद
खष्ठी के दिन कई तरह के प्रसाद जैसे ठेकुआ और मीठी पूरी बनायी जाती है। इसी दिन प्रसाद और फल की टोकरी भी सजायी जाती है। सूरज ढलते ही महिलाएं बांस की टोकरी में रखी सभी पूजा सामग्री सूर्य देवता को चढ़ाती हैं और ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर वापस लौट आती हैं। खष्ठी की रात महिलाएं छठ माता का गीत गाती हैं और कीर्तन करती हैं।
सप्तमी को उगते हुए सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य
छठ पर्व के आखिरी दिन छठ माता की पूजा करने के बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा का समापन किया जाता है। छठ पूजा के अंतिम दिन महिलाएं भोर में तीन या चार बजे ही जगकर पूजा की तैयारियां करती हैं और नदी या तालाब में पानी के बीच खड़ी हो जाती है। जैसे ही सूर्य की लालिमा दिखती है, महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देकर संतान प्राप्ति और उसकी सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं और प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलती है।
इस तरह व्रत की शुरूआत करने से लेकर सूर्य को अंतिम अर्घ्य देने तक व्रत और पूजा के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। इससे छठ माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।