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Govardhan Puja क्यों मानते है? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं कथा

Updated Oct 28, 2019 | 06:30 IST |

Govardhan puja vidhi: जिस तरह माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है उसी तरह से गोवर्धन उत्सव में गौ माता की पूजा से स्‍वास्‍थ्‍य सुख प्रदान होता है। यहां जानें गोवर्धन पूजा विधि एवं कथा..

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Govardhan puja

प्रत्येक वर्ष दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर गाय के गोबर से गोधन बनाकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं। गोवर्धन पूजा में खासतौर पर गाय की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार गाय को मां लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है।

कहा जाता है कि जिस तरह माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है और धन धान्य में वृद्धि होती है। उसी तरह गोवर्धन उत्सव के दिन गौमाता की पूजा करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और व्यक्ति हमेशा निरोगी रहता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा 28 अक्टूबर, दिन सोमवार को है। आइये जानते हैं गोवर्धन पूजा की विधि, महत्व और कहानी के बारे में।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ: 28 अक्टूबर को सुबह 09: 8 मिनट से
प्रतिपदा तिथि का समापन: 29 अक्टूबर को सुबह 06: 13 मिनट तक

गोवर्धन पूजा की विधि
इस दिन महिलाएं अपने घर के आंगन को गोबर से लीपकर शुद्ध करती हैं और गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और गोधन भगवान को बनाकर चावल, फूल, हल्दी, दही और रोली चढ़ाकर पूजा करती हैं। इसके बाद घी का दीपक जलाकर गोधन की आरती उतारी जाती है। पूजा के बाद महिलाएं गोबर से बने पर्वत की परिक्रमा करती हैं और भगवान को अन्नकूट का भोग लगाती हैं।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पूजा की शुरूआत द्वापर युग में हुई थी। इस उत्सव का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। माना जाता है कि सभी व्रजवासी गोवर्धन पूजा से पहले इंद्र की पूजा करते थे। लेकिन एक बार भगवान कृष्ण के कहने पर व्रजवासियों ने इंद्र की पूजा की छोड़कर गाय की पूजा करने लगे और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर परिक्रमा करके आशीर्वाद प्राप्त करने लगे।

नाराज होकर इंद्र ने भारी वर्षा करके व्रज को जलमग्न कर दिया। तब भगवान कृष्ण ने व्रजवासियों के प्राणों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया और लगातार सात दिनों तक व्रजवासी उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लिए थे। बाद में इंद्र ने कृष्ण भगवान से माफी मांगी और गोवर्धन पर्वत की पूजा को महत्व दिया। तब से हर साल गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

इस पूजा के विशेष महत्व के कारण देश में विभिन्न स्थानों पर गोवर्धन पूजा बहुत धूमधाम से होती है। लोग गाय के पवित्र गोबर से घर आंगन शुद्ध करते हैं और गोवर्धन की पूजा करके सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

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